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उम्र, शारीरिक व आत्मिक उतार- चढ़ाव और प्रगति की बहार है। जवानी वह समय है जब शक्ति, भावना और एहसास और आकांक्षा आदि इंसान पर हावी होते हैं और ऐसे समय में जो चीज़ इंसान को सही रास्ता दिखा सकती है वे ईश्वरीय क़ानून हैं यानी पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथन। आज के कार्यक्रम में हम इस बात की समीक्षा करेंगे कि अगर किसी जवान का दिल ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र कुरआन से लग जाये तो उसके क्या लाभ हैं। पवित्र कुरआन वह आसमानी किताब है जो जवान को परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचा देती है।

 

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युवा के अंदर धार्मिक रुझान पाया जाता है। धर्म, आध्यात्म और परिज्ञान के बारे में जवानों के पास बहुत प्रश्न होते हैं। इस आधार पर जवानों के धर्म से परिचित होने का अधिक महत्व है। क्योंकि धार्मिक रुझान के साथ ही जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचना संभव है।

 

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युवा के मार्गदर्शन में जिस तरह उसके रुझानों व रुचियों पर ध्यान देना आवश्यक है उसी तरह ईश्वर की पहचान के संबंध में उसकी आत्मिक प्यास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। क्योंकि युवाओं का पवित्र हृदय वास्तविकताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार होता है इसलिए जवानों का सही मार्गदर्शन आवश्यक होता है। जवानों के अंदर धर्म की प्यास उस समय बुझेगी जब वे जीवन के समृद्ध व वास्तविक स्रोतों से अवगत होंगे।

 

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पवित्र कुरआन जीवन और वास्तविकताओं को स्पष्ट करने वाला वह स्रोत है जिसे महान ईश्वर ने पैग़म्गबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम पर उतारा है। पवित्र कुरआन की आयतें इंसान की पवित्र और अच्छी प्रवृत्ति को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और वे सोच -विचार, चिंतन- मनन करने और वर्तमान एवं अतीत की घटनाओं से पाठ लेने के लिए इंसान का आह्वान करता है। पवित्र कुरआन मार्गदर्शन की किताब है और इंसान ऐसा प्राणी है जिसके पास सोच- विचार की शक्ति है और उसे मार्गदर्शक की आवश्यकता है।

 

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पवित्र कुरआन महान ईश्वर का बहुत बड़ा चमत्कार है। वह चमकते सूरज की भांति है जो भी उसके प्रकाश से लाभ उठायेगा वह हरा- भरा व प्रफुल्लित हो जायेगा। इसी आधार पर धर्म पर आस्था रखने वाला इंसान पवित्र कुरआन का अध्ययन करके नयी वास्तविकताओं को प्राप्त करता है और वह अपनी सोच व बुद्धि का प्रयोग करके सही गलत में अंतर करता है।

 

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पवित्र कुरआन जीवनदायक अपनी शिक्षाओं के माध्यम से इंसानों के दिलों को अपनी ओर आकर्षित करता है और इंसानों का मार्गदर्शन जीवन की सही शैली की ओर करता है। पवित्र कुरआन का उद्देश्य यह है कि मानव समाज में ईमान, न्याय, शांति, प्रेम, दोस्ती और भाई- चारा आदि प्रचलित हो। इसी परिप्रेक्ष्य में पवित्र कुरआन इंसानों का आह्वान करता है कि वे दूसरों पर अन्याय करने से दूरी करें और न्याय और एकेश्वरवाद को अपने जीवन का आदर्श करार दें। पवित्र कुरआन को याद करने का बेहतरीन समय जवानी एवं नौजवानी है जो चीज़ इस उम्र में याद कर ली जाती है वह सदैव बाक़ी रहती है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं जो जवानी में ज्ञान अर्जित करता है उसका उदाहरण पत्थर पर लिखी लकीर की भांति है और जो बुढ़ापे में ज्ञान अर्जित करता है वह पानी पर लिखने की भांति है।

 

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पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन समस्त लोगों विशेषकर युवाओं का पवित्र कुरआन को पढ़ने और उसे समझने का आह्वान करते थे ताकि वे इस किताब की जीवनदायक शिक्षाओं से लाभान्वित हो सकें। जवान जितना अधिक पवित्र कुरआन से लाभ उठायेगा उतनी ही उसके  आध्यात्म में वृद्धि होगी और पापों से दूरी करता चलता जायेगा।

 

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जवानों को चाहिये कि वे पवित्र कुरआन को महत्व दें और उसे अपना बेहतरीन साथी करार दें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जवानों के बेहतरीन साथी के बारे में फरमाते हैंअगर दुनिया के पूरब और पश्चिम के समस्त लोग चले जायें तो भी मैं अकेलेपन से कदापि नहीं डरूंगा जब कुरआन हमारे साथ हो।

 

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पवित्र कुरआन अपनी आयतों में जवानों के लिए योग्य व भले जवानों का उदाहरण पेश करता है ताकि वे अपने जीवन में पवित्र कुरआन की शिक्षाओं को व्यवहारिक बनायें और परिपूर्णता की ओर क़दम बढायें। पवित्र कुरआन में जवानों के एक उदाहरण हज़रत युसुफ पैग़म्बर हैं। जब वह युवा हो गये तो उन्होंने अपने जीवन की एक कड़ी परीक्षा दी और उसमें वह सफल हो गये। वह परीक्षा उनकी पवित्रता व पाकदामनी की थी। हज़रत युसुफ अपने पालनहार से दुआ करते हुए कहते हैं हे पालनहार! मेरी नज़र में कारावास उस चीज़ से बेहतर है जिसकी ओर ये महिलाएं मुझे बुला रही हैं और अगर तू इनकी चालों को उनकी ओर नहीं लौटायेगा तो मेरा दिल उनकी ओर झुक हो जायेगा और मैं अज्ञानी लोंगों में से हो जाऊंगा।

 

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महान ईश्वर ने भी हज़रत युसुफ को अकेला नहीं छोड़ा और महिलाओं की चाल को उनकी ओर पलटा दिया परिणाम स्वरूप हज़रत युसुफ की पवित्रता और मिस्र के राजा की पत्नी की धूर्तता सिद्ध हो गयी। हज़रत यूसुफ़ की कहानी से हमारे जवानों को पाठ मिलता है कि जवानों को चाहिये कि वे पूरी तरह और सही अर्थों में महान ईश्वर पर भरोसा करें न कि अपनी शक्ति और अपने ईमान पर।

 

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समाज में शिक्षा -प्रशिक्षा के ज़िम्मेदारों का दायित्व है कि वे जवानों एवं नौजवानों को पवित्र कुरआन से परिचित करायें और उनकी सोच- विचार को पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के अनुरुप बनायें और इस प्रकार वे पवित्र कुरआन को अलग- थलग की स्थिति से बाहर निकालें। अगर जवान पवित्र कुरआन से प्रेम करने लगें और उसकी आयतों की तिलावत करें और उसमें चिंतन- मनन करें तो उनके हृदय प्रकाशमयी हो जायेंगे।

 

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हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जो ईमानदार जवान पवित्र कुरआन की तिलावत करे तो कुरआन उसके मांस और खून में मिश्रित हो जायेगा।

 

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ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई जवानों के मध्य पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार पर विशेष ध्यान देते हैं। वरिष्ठ नेता जवानों को संबोधित करते हुए कहते हैं मेरे प्रिय जवानो! कुरआन की तिलावत एक बहुत बड़ी विशेषता है और वह एक पुण्य है परंतु यह तिलावत ज्ञान तक पहुंचने का साधन है। यह कुरआन एक महासागर है। जितना आगे बढ़ोगे उतना अधिक प्यासे होते जाओगे कुरआन के प्रति आपका प्रेम बढ़ता जायेगा और आपका दिल प्रकाशमयी होता जायेगा। कुरआन में चिंतन- मनन करना चाहिये। मैं फिर आप जवानों का आह्वान करता हूं कि कुरआन के अर्थों से रूचि पैदा करो और कुरआन के अनुवाद को समझो। मैंने बारम्बार इस चीज़ का आह्वान जवानों से किया है और बहुत से जवानों ने इस दिशा में क़दम भी बढाया है। जिस कुरआन की प्रतिदिन तिलावत करते हो, जितना तिलावत किया है। उसके अनुवाद को भी देखो। इन अर्थों को जवानों के ज़ेहनों में बैठ जाने दो उस समय वह चिंतन- मनन का अवसर प्राप्त कर लेगा।

 

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पवित्र कुरआन व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्त मामलों में जवानों का मार्गदर्शक है। आत्म निर्माण, परिवार के साथ व्यवहार, कार्य और सरकार चलाने आदि के नियम पवित्र कुरआन में मौजूद हैं। दूसरे शब्दों में व्यक्ति एवं सामाजिक जीवन के समस्त क़ानून इस आसमानी किताब में मौजूद हैं।

 

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KEVIN  COMBES  नामक युवा ने ईश्वरीय धर्म इस्लाम की अच्छाईयां समझ जाने के बाद इस धर्म को स्वीकार कर लिया और उसने अपना नाम अब्दुल्लाह इस्लाम रख लिया। वह अमेरिकी जवान है। वह पवित्र कुरआन को मार्गदर्शक पुस्तक समझता है और वह जीवन शैली को पवित्र कुरआन से सीखता है। वह इस किताब की सुन्दरता को इस प्रकार बयान करता है जब मैं कुरआन से परिचित हुआ तो देखा कि दुनिया में मैंने जितनी भी बातें सुनी हैं वह उन सबमें सबसे सुन्दर है मैं कुरआन के अर्थों को नहीं समझता था केवल इतना समझता था कि वह बहुत सुन्दर वाणी है। जब मैंने कुरआन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ कर जो महसूस करता हूं उसे शब्दों में नहीं बयान कर सकता। कुरआन में कोई विरोधाभास दिखाई नहीं पड़ता। यह आसमानी किताब जिन्दगी की किताब है।

 

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पवित्र कुरआन सदैव बाक़ी  रहने वाली पूंजी है और वह कभी भी समाप्त नहीं होगी। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जो भी जवानी के समय में कुरआन पढ़े और बा ईमान हो तो कुरआन उसके मांस और खून में मिश्रित हो जायेगा। ईश्वर उसके साथ संदेश ले जाने वाले फरिश्तों जैसा अच्छा व्यवहार करेगा और प्रलय के दिन कुरआन नरक की आग के समक्ष बाधा बन जायेगा और कहेगा पालनहार! मेरे श्रमिक के अलावा हर श्रमिक को उसकी मज़दूरी मिल गयी। तो तू अपनी बेहतरीन पारितोषिक को उसे प्रदान कर। तो ईश्वर स्वर्ग से उसे दो वस्त्र पहनायेगा और उसके सिर पर प्रतिष्ठा का मुकुट रखेगा। उसके बाद कुरआन से कहा जायेगा क्या हमने इस व्यक्ति के बारे में तुम्हें प्रसन्न कर दिया? कुरआन कहेगा पालनहार! मैं उसके बारे में इससे बेहतर चाहता था तो उसके बाद नरक की आग से सुरक्षा का पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया जायेगा और सदैव स्वर्ग में रहने का पत्र उसके बायें हाथ में दिया जायेगा और वह स्वर्ग में दाखिल हो जायेगा। उसके बाद उससे कहा जायेगा कुरआन पढ़ो और एक दर्जा ऊपर जाओ। उस समय कुरआन से कहा जायेगा क्या तुम जो चाहते थे उस तक मैंने तुम्हें पहुंचा दिया और तुम्हें प्रसन्न कर दिया? वह व्यक्ति कहेगा हां तो इमाम ने फरमाया जो कुरआन को बहुत अधिक पढ़ेगा इसके बावजूद कि उसका याद करना उसके लिए कठिन हो वह उसे अपने ज़ेहन में सुरक्षित और याद कर ले तो ईश्वर उसे दोबारा इसका बदला देगा।

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 28 April 16 ، 12:55
Mesam Naqvi

बेअसते पैग़म्बरे अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा का दिन है। इस दिन ईश्वर ने अपनी कृपा व दया के अथाह सागर के माध्यम से मनुष्य को निश्चेतना और पथभ्रष्टता के अंधकार से निकाला।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम को यह भारी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा मानव इतिहास की बहुत ही निर्णायक घटना है। ऐसी महान घटना जिसके घटने से अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम के पवित्र मुख से पवित्र क़ुरआन की आयतें जारी हुईं और पवित्र क़ुरआन ने इस महान घटना को महान उपकार और अनुकंपा की संज्ञा दी।

पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 में आया है कि निःसन्देह, ईश्वर ने ईमान वालों पर उपकार किया उस समय जब उसने उन्हीं में से एक को पैग़म्बर बनाकर भेजा ताकि वह उन्हें ईश्वर की आयतें पढ़कर सुनाए और उन्हें (बुराइयों से) पवित्र करे तथा उन्हें किताब व तत्वदर्शिता की शिक्षा दे। निःसन्देह इससे पूर्व वे खुली हुई पथभ्रष्टता में थे।

मित्रो हम ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने हमारे मार्गदर्शन के लिए ऐसा दूत भेजा जिसने मनुष्य की प्रवृति को जागरूक और उसकी आत्मा को पवित्र ईश्वरीय शिक्षाओं से अवगत कराया। उस ईश्वर का आभार जिसने अपनी अनुकंपाएं वहि अर्थात ईश्वरीय आदेश और उसके मार्गदर्शन के माध्यम से समस्त लोगों को प्रदान कीं। इस सुखद अवसर पर हम आपकी सेवा में हार्दिक बधाईयां प्रस्तुत करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा मानव इतिहास में नया अध्ययन है जिसे उस समय की महा क्रांति की संज्ञा दी जा सकती है। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की आधारिक घोषणा के समय विश्व में जारी परिवर्तनों से अवगत होने से उनकी पैग़म्बरी का महत्त्व अधिक स्पष्ट हो जाता है।

बेअसते पैग़म्बर के समय विश्व पतन का शिकार और संकटग्रस्त था। अज्ञानता, लूटपाट, अत्याचार, कमज़ोरों और वंचितों के अधिकारों की अनदेखी, पथभ्रष्टता, भेदभाव, अन्याय और मानवता और शिष्टाचार से दूरी, उस समय के समाजों में फैला हुआ था। इसी मध्य अरब प्रायद्वीप विशेषकर पवित्र नगर मक्का की स्थिति, सांस्कृतिक, राजनैतिक व सामाजिक दृष्टि से सबसे बुरी व सबसे विषम थी। अज्ञानी अरब हाथ से बनाई लकड़ी व मिट्टी की मूर्ति के आगे नतमस्तक होते थे और इन बे जान मूर्ति को प्रसन्न करने के लिए बलि चढ़ाते थे और उनसे सहायता मांगते थे और हर समझदार व बुद्धिमान व्यक्ति को आश्चर्य व खेदप्रकट करने पर विवश कर देते थे।

ईश्वर पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतों में उस काल में प्रचलित कुछ अमानवीय संस्कारों और बुराइयों की ओर संकेत करते हुए अज्ञानता की काल में प्रचलित अमानवीय परंपराओं की पोल खोलता है। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के हवाले से अरब जगत में उस काल की अनुचित स्थिति के बारे में आया है कि एक दिन क़ैस बिन आसिम पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पास आया और कहता है कि या रसूल अल्लाह, मैंने अज्ञानता के काल में अपनी आठ जीवित लड़कियों को जीवित ज़मीन में गाड़ दिया। जब आसिम इब्ने क़ैस अपनी आठ जीवित लड़कियों को जीवित ज़मीन में गाड़ने की घटना बयान कर रहा था तो पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे पर परिवर्तन आया और तेज़ी से उनकी आंखों से आंसू जारी हो गये और उन्होंने अपने निकट बैठे लोगों से कहा कि यह निर्दयता है और जो दूसरों पर दया नहीं करेगा, ईश्वर की दया का पात्र नहीं हो सकता।

उस काल में अरब में जितनी पथभ्रष्टता फैली हुई थी शायद विश्व के किसी अन्य स्थान पर उस तरह पथभ्रष्टता फैली हो। यही कारण है कि इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व उस काल को अज्ञानता का काल कहते हैं और उस समय के लोगों को बद्दू अरब कहा जाता है। उस काल के अरब न केवल पढ़ते लिखते नहीं थे बल्कि हर प्रकार के ज्ञान व तकनीक से दूर थे और बुद्धि व तर्क से परे भविष्यवाणी करते थे और कुरीतियों का अनुसरण करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ऐसे ही लोगों को सुधारने के लिए भेजे गये थे ताकि न केवल उस धरती पर बल्कि पूरे इतिहास में पूरी दुनिया के लिए मुक्ति की नौका हों। अब जब हम पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के संदेश से थोड़ी सा परिचित हो गये तो हमारे लिए यह वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है कि उनका निमंत्रण आरंभ से ही बुद्धि और तर्क पर आधारित रहा था। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने सभी से यह मांग की है कि चिंतन मनन करें और उसी को स्वीकार करें जिसकी बुद्धि व तर्क पुष्टि करें।

इस बात के दृष्टिगत कि पैग़म्बरे इस्लाम उस जाति के मध्य जीवन व्यतीत कर रहे थे जिनका जीवन कुरीतियों से भरा हुआ था किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के लिए सबसे गौरव की बात भी यही थी कि उन्होंने भ्रांतियों और कुरीतियों से संघर्ष किया क्योकि एकेश्वरवाद की विचार के फैलने के लिए आवश्यक था कि बुद्धि और तर्क की छत्रछाया में अज्ञानता से संघर्ष किया था। निसंदेह पैग़म्बरे इस्लाम के लक्ष्यों में से एक कुरीतियों का विरोध और तर्क व बुद्धि को प्रचलित करना था।

पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी ताकि लोग वास्तविकता के उपासक हो न कि भ्रांति और कुरीतियों के। इतिहास में उल्लेख है कि उनके एक मात्र पुत्र हज़रत इब्राहीम का जब स्वर्गवास हुआ तो वह बहुत रोये। उनके स्वर्गवास के दिन सूरज ग्रहण लग गया और कुरीतियों का शिकार लोग इस घटना को दुख की महान निशानी समझ बैठे और उन्होंने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र के निधन के कारण सूरज ग्रहण लगा है। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने यह बातें सुनी तो मिंबर पर आये और कहने लगे कि सूर्य और चंद्रमा दोनों ही ईश्वर की महान निशानियां हैं और उसके आदेशों का कहना मानते हैं और कभी भी किसी के जीने या मरने से इनको ग्रहण नहीं लगता।

यद्यपि यह घटना, पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के हवाले से लोगों की आस्थाओं को सुदृढ़ करती किन्तु वे कदपि इस बात से राज़ी नहीं हुए कि उनकी स्थिति कुरीतियों के माध्यम से लोगों के दिलों में मज़बूत हो। पैग़म्बरे इस्लाम नहीं चाहते थे कि लोगों की कुरीतियों सहित उनकी कमज़ोरियों से उनके मार्गदर्शन के लिए लाभ उठाएं बल्कि वे चाहते थे कि वे पूरी जागरूकता और पूरे ज्ञान से इस्लाम धर्म को स्वीकार करें क्योंकि ईश्वर पवित्र क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि लोगों को तत्वदर्शिता और उपदेश के माध्यम से ईश्वर की ओर बुलाओ।

चिंतन मनन उन विषयों में से था जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत अधिक बल दिया था। वे कहते थे कि ईश्वर ने अपने बंदों को बुद्धि से बढ़कर कोई चीज़ प्रदान नहीं की है।

सैद्धांतिक रूप से हर वैचारिक व्यवस्था में बुद्धि की सहायता ली जानी चाहिए। यदि हम ईश्वर के अनन्य होने, ईश्वरीय दूतों के अस्तित्व, वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश और इन जैसे विषयों को सिद्ध करना चाहें तो हमें बौद्धिक तर्कों की सहायता लेनी पड़ेंगी। ग़लत आस्था से सही आस्था को पहचानने के लिए बुद्धि ही है जो मनुष्य की सहायता करती है धार्मिक शिक्षाओं की छत्रछाया में वास्तविकता तथा भ्रांति के मध्य सीमा को निर्धारित करती है। पवित्र क़ुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता सैयद अल्लामा तबातबाई पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में बुद्धि के स्थान के महत्त्व के बारे में कहते हैं कि यदि ईश्वरीय पुस्तक में संपूर्ण चिंतन मनन करें और उसकी आयतों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तो हमें तीन सौ से अधिक आयतें मिलेंगी जो लोगों को चिंतन मनन और बुद्धि के प्रयोग का निमंत्रण देती हैं, या ईश्वरीय दूतों को वे तर्क सिखाएं हैं जिससे सत्य को सिद्ध करने और असत्य को समाप्त करने के लिए प्रयोग किया गया है। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन की एक भी आयत में अपने बंदों को यह आदेश नहीं दिया है कि बिना समझे ईश्वर या उसकी ओर से आई हर चीज़ पर ईमान लाओ या आंखें बंद करके आगे बढ़ते रहें।

चिंतन मनन के निमंत्रण के सथ पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ने ज्ञान प्राप्ति पर बहुत अधिक बल दिया है। उनका कहना था कि ज्ञान प्राप्त करो चाहे तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े। वे ज्ञान की प्राप्ति पर इतना अधिक बल देते थे कि उनके हवाले से बयान हुआ है कि एक युद्ध में उन्होंने अनकेश्वरवादी बंदियों की स्वतंत्रता के लिए यह शर्त रखी कि वे मुसलमानों को शिक्षा दें। वर्तमान समय में यह बहुत ही आश्चर्य ही बात है कि आज कुछ पथभ्रष्ट लोग इस्लाम धर्म के नाम पर और पैग़म्बरे इस्लाम की परंपराओं को जीवित करने के बहाने कुछ शिक्षण संस्थाओं पर आक्रमण करते हैं और इस्लाम के नाम पर घिनौने अपराध करते हैं। हाल ही में नाइजेरिया के चरमपंथी संगठन बोको हराम ने छात्राओं के एक बोर्डिंग स्कूल पर धावा बोलकर ढाई सौ से अधिक छात्राओं का अपहरण कर लिया। इन लड़कियों का केवल यह अपराध है कि ये छात्रा हैं। दुनिया का कौन व्यक्ति या कौन सी बुद्धि उनके इस घृणित कार्य को इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण कह सकती हैं। इस खेदजनक घटना से इस्लाम धर्म का कुछ लेना देना नहीं है बल्कि यह इस्लाम धर्म के झूठे दावेदारों की पोल खोल देते हैं।

मुसलमानों के लिए यह गर्व की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन के हर पवित्र क्षण, लोगों के कल्याण और उनके विकास के लिए ज्ञान संबंधी प्रयास और उनके अज्ञानता के अंधकार से निकालने पर व्यतीत किए।

एकेश्वरवाद का निमंत्रण, भ्रांतियों से दूरी, स्वतंत्रता का निमंत्रण, न्याय की स्थापना के लिए प्रयास, दास प्रथा व बंदी प्रभा से संघर्ष, अत्याचारियों से संघर्ष, अत्याचारग्रस्त लोगों का समर्थन, ज्ञान व तकनीक की ओर प्रेरित करना, मानवीय प्रतिष्ठा और उसके नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना, बुद्धि का सम्मान, मतभेद व अज्ञानता का विरोध, पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की व्यापक शिक्षाओं के भाग हैं जिनमें मुसलममानों और दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिए मूल्यवान बिन्दु निहित हैं। यह शिक्षाएं परिपूर्ण हैं और मनुष्य के लिए सीधा रास्ता है जो उसको कल्याण की ओर ले जाता है।

sharethis 27 रजब पैग़म्बरे (स) की नबूवत की घोषणा (बेसत) का दिन
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Mesam Naqvi

सूरए फ़त्ह पवित्र क़ुरआन का 48वां सूरा है। यह सूरा मदीने में उतरा।  इसमें 29 आयतें है। इस सूरे के नाम से ही स्पष्ट है कि यह विजय और सफलता का संदेश दे रहा है। अरबी भाषा में फ़त्ह, सफलता या विजय को कहते हैं। शत्रुओं पर विजय, स्पष्ट व उल्लेखनीय सफलता।

इस सूरे में निम्न लिखित बातों पर चर्चा हुई है। विजय व फ़त्ह की शुभ सूचना, हुदैबिया नामक संधि से संबंधित घटनाएं, मोमिनों के दिलों पर शांति छाना, बैअत रिज़वान नामक संधि की घटना, पैग़म्बरे इस्लाम(अ) और उनका सर्वोच्च लक्ष्य, मिथ्याचारियों की भूमिका। उनके उल्लंघन और उनकी अनुचित मांगें, वे लोग जिनपर जेहाद ज़रूरी नहीं है, मक्के में प्रविष्ट होने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के सपने का साकार होना , उमरा अंजाम देना और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों की विशेषताएं इत्यादि।

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सूरए फ़त्ह के उतरने के बारे में कहा जाता है कि छठी हिजरी क़मरी में पैग़म्बरे इस्लाम ने उमरे का संस्कार अंजाम देने के लिए मक्के की ओर जाने का इरादा किया और मुसलमानों को इस यात्रा में शामिल होने की ओर प्रोत्साहित किया। उन्होंने मुसलमानों को बताया कि मैंने सपने में देखा है कि मैं अपने साथियों के साथ मस्जिदुल हराम में प्रविष्ट हुआ और उमरा कर रहा हूं। पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उनके कुछ साथी इस यात्रा में उनके साथ हो लिए। उनकी संख्या एक हज़ार चालीस थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने सबसे कहा कि एहराम बांध लें और क़ुरबानी के ऊंट के अतिरिक्त अपने पास कोई रास्त्र न रखें ताकि क़ुरैश को यह विश्वास हो जाए कि इस यात्रा का उद्देश्य, काबे का दर्शन और उमरा अंजाम देना है।

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पैग़म्बरे इस्लाम हुदैबिया नामक स्थान पर पहुंचे। हुदैबिया मक्के के निकट एक क़स्बे का नाम था। वहां पर क़ुरैश को इसकी सूचना मिलती और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम का रास्ता रोक लिया और उन्हें मक्के में प्रविष्ट होने की अनुमति नहीं दी।

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पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने एक प्रतिनिधि को मक्के भेजा और इस प्रकार कई बार दोनों पक्षों के प्रतिनिधि इधर उधर आये गये। अंततः बहुत अधिक बातचीत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम और मक्के के अनेकेश्वरवादियों के मध्य एक समझौता हुआ। हुदैबिया नामक संधि वास्तव में एक ऐसी संधि थी जिसमें कहा गया था कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष पर हमला नहीं करेगा और इस प्रकार से मुसलमानों और मक्के के अनेकेश्वरवादियों के मध्य जारी निरंतर झड़पें अस्थाई रूप से रुक गयीं।

 

समझौते की विषय वस्तु के बारे में अनेकेश्वरवादियों और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों के मध्य भीषण मतभेद पाया जाता था किन्तु अंत में दोनों पक्षों की सहमति से समझौता तैयार हुआ।

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हुदैबिया संधि का एक विषय यह था कि मुहम्मद अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम इस वर्ष लौट जाएं और मक्के में प्रविष्ट न हों किन्तु अगले वर्ष मुसलमान मक्के आ सकते हैं इस शर्त के साथ कि वे तीन दिन से अधिक समय तक मक्के में न रहें और इस अवधि में उमरा अंजाम दें और अपने घर लौट जाएं। इस समझौते में कई अन्य विषय भी थे जिनमें से एक यह था कि वह मुसलमान जो मदीने से मुक्के में दाख़िल होंगे उनकी जान व माल की सुरक्षा की गैरेंटी दी जाएगी। इसी प्रकार यह भी तै पाया हुआ कि दस वर्षों तक मुसलमानों और मक्के के अनेकेश्वरवादियों के बीच कोई युद्ध नहीं होगा । इसी प्रकार समझौते के अनुसार में मौजूद मुसलमानों को धार्मिक संस्कारों को अंजाम देने में पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी।

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उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को अपने क़ुरबानी के ऊंटों को वहीं ज़िब्ह करने का आदेश दिया और अपने सिरों को मुडवाने और एहराम उतारने का आदेश दिया। इस बात से कुछ मुसलमान नाराज़ हो गये क्योंकि उनके लिए उमरा अंजाम दिए बिना एहराम उताराना असंभव था किन्तु सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम आगे बढ़े और उन्होंने अपना एहराम उतारा, सिर मुंडवाया और अपने क़ुरबानी के जानवर की ज़िब्ह किया। मुसलमानों ने भी पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण किया और उन्होंने एहराम उतार दिए और वे सबके सब मदीने की ओर रवाना हो गये। जब पैग़म्बरे इस्लाम मदीने की ओर लौट रहे थे, अचानक उनके चेहरे पर प्रसन्नता छा गयी और उसके बाद ही सूरए फ़त्ह उतरा। निसंदेह हमने आपको खुली हुई विजय प्रदान की है। इस सूरए की पहली ही आयत में पैग़म्बरे इस्लाम को महाशुभसूचना दी गई है। ऐसी शुभसूचना जो कुछ रिवायतों और कथनों के अनुसार, पूरी दुनिया में पैग़म्बरे इस्लाम के लिए सबसे लोकप्रिय थी। जिसमें कहा गया है कि हमने आपको खुली हुई विजयी प्रदान की। यह एक ऐसी बड़ी विजय थी जिसका प्रभाव दीर्घावधि और लंबे समय में इस्लाम की प्रगति और मुसलमानों की ज़िंदगी पर पड़ेगा, इस्लाम के इतिहास में अद्वितीय विजय।

 

 

 

हुदैबिया संधि के बाद पूरे अरब प्रायद्वीप में इस्लाम के फैलने का मार्ग प्रशस्त हो गया और पैग़म्बरे इस्लाम की शांतिप्रेमी आवाज़ ने उन जातियों को जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम धर्म से ग़लत विचार  लिए, अपने दृष्टिकोणों पर पुनर्विचार करने पर विवश कर दिया। अनेकेश्वरवादियों ने बड़ी सरलता से मुसलमानों से संपर्क बना लिया और धीरेधीरे गुटों में इस्लाम धर्म स्वीकार करते रहे। इस प्रकार मुसलमानों की संख्या ग़ैर महसूस तरीक़े से बढ़ती गयी। वास्तव में हुदैबिया संधि ने बाद की सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया और यह मुसलमानों की एक बड़ी विजय थी।

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सूरए फ़त्ह की दूसरी और तीसरी आयत के कुछ भागों में फ़त्हे मुबीन अर्थात खुली हुई विजय के बारे में विवरण दिया गया है। इन आयतों में आया है कि ताकि ईश्वर आपके अगले पिछले समस्त आरोपों को समाप्त कर दे और आप पर पुरानी अनुकंपाओं को ख़त्म कर दे और आपको सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन कर दे और ज़बरदस्त तरीक़े से आपकी सहायता करे।

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इस विजय की छत्रछाया में पैग़म्बरे इस्लाम को बड़ी अनुकंपाएं प्रदान की गयीं। हुदैबिया संधि ने स्पष्ट हुआ कि पैग़म्बरे इस्लाम के संस्कार क्षत्र के विचारों के विपरीत प्रगतिशालि एवं ईश्वरीय संस्कार हैं। क़ुरआन की आयतें, मनुष्यों के विकास और उनके निखार का कारण बनती हैं और वे रक्तपात, युद्ध व अत्याचारों को समाप्त करने वाली हैं। इसी प्रकार सिद्ध हो गया कि पैग़म्बरे इस्लाम तार्किक हैं जो अपने वचनों पर कटिबद्ध रहने वाले हैं और यदि शत्रु उन पर युद्ध न थोपें तो वह सदैव शांति व सुलह का निमंत्रण देते हैं। इस प्रकार से इस्लाम धर्म की भव्य शिक्षाएं पहले से अधिक स्पष्ट हो गयीं और ईश्वरीय अनुकंपाएं पूरी हो गयीं। उन्होंने इसके द्वारा बड़ी सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया। अलबत्ता दो साल बाद अर्थात आठ हिजरी क़मरी को जब अनेकेश्वरवादियों ने संधि का उल्लंघन किया तो मुसलमान दस हज़ार की सेना के साथ मक्के की ओर रवाना हो गये ताकि उनके उल्लंघन का ठोस जवाब दें। इसके बाद मुसलमान सेना ने बिना किसी झड़प के अनेकेश्वरवादियों के केन्द्र मक्के पर विजय प्राप्त कर ली और यह भी हुदैबिया संधि के व्यापक व विस्तृत प्रभाव की एक निशानी थी।

 

 

 

रिज़वान नामक आज्ञापालन की घटना, हुदैबिया संधि से जुड़ी एक अन्य घटना है। जैसा कि हमने आपको बताया था कि इस घटना में इधर के प्रतिनिधि उधर और उधर के प्रतिनिधि इधर आते जाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम(स) ने उसमान बिन अफ़वान को अपना प्रतिनिधि बनाकर अनेकेश्वरवादियों के पास मक्के भेजा ताकि वे उन्हें बताएं कि मुसलमान युद्ध करने के लिए मक्के नहीं आये हैं किन्तु क़ुरैश ने उस्मान को रोक लिया और उसके बाद मुसलमानों में यह अफ़वाह फैल गयी कि उस्मान बिन अफ़वान मारे गये। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि मैं यहां से तब तक नहीं हिलूंगा जब तक मेरी उनसे संधि है। उसके बाद वे एक वृक्ष के नीचे गये और उन्होंने लोगों से एक बार फिर अपने आज्ञापालन का वचन लिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने साथियों से इच्छा व्यक्त की कि अनेकेश्वरवादियों के साथ हुई संधि की अनदेखी न करें और रणक्षेत्र छोड़कर ने भागें। इस आज्ञापालन को इतिहास में बैअते रिज़वान का नाम दिया गया अर्थात ईश्वरीय प्रसन्नता का आज्ञापालन। इसका लक्ष्य मुसलमानों के आत्मविश्वास और उनके बलिदान के स्तर को परखना था। क़ुरैश के सरदार इस आज्ञापालन से अवगत हो गये और उनपर भय छा गया और उन्होंने उस्मान बिन अफ़वान को स्वतंत्र कर दिया।

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सूरए फ़त्ह की आयत संख्या 18 में आया है कि निश्चित रूप से ईश्वर ईमान वालों से उस समय राज़ी हो गया जब वह वृक्ष के नीचे आपके आज्ञा पालन का वचन दे रहे थे फिर उसने वह सब कुछ देख लिया जो उनके दिलों में था तो उन पर शांति उतारी और उन्हें इसके बदले निकट विजय प्रदान कर दी।

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सूरए फ़त्ह की 27वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम के सपने और मस्जिदुल हराम में अपने साथियों के साथ उनके प्रविष्ट होने के वादे के व्यवहारिक होने की ओर संकेत किया गया है। ईश्वर कहता है कि निसंदेह ईश्वर ने अपने पैग़म्बर को बिल्कुल सच्चा सपना दिखाया था कि ईश्वर ने चाहा तो तुम लोग मस्जिदुल हराम में शांति के साथ सिर के बाल मुंडा कर और थोड़े से बाल काट कर प्रविष्ट हो गये और तुम्हें किसी भी प्रकार का भय न होगा तो उसे वह भी मालूम था जो तुम्हें नहीं मालूम था तो उसने मक्के पर विजय से पहले एक निकट विजय क़रार दे दी।

 

यह आयत उस समय उतरी जब पैग़म्बरे इस्लाम मदीने की ओर लौट रहे थे। इस आयत में इस बात पर बल देते हुए कि पैग़म्बरे इस्लाम ने जो सपना देखा था वह सच्चा था, बिना रक्तपात और युद्ध के मुसलमानों के मक्के में प्रविष्ट होने और अंततः शांति के साथ उमरा अंजाम देने की सूचना दी गयी है।

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हुदैबिया संधि के ठीक एक साल बाद अर्थात सातवीं हिजरी क़मरी के ज़ीक़ादा महीने में पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथियों की सहमति से उमरा करने मक्का गये। उन्होंने एहराम पहना और तलवारों को मियान में रख लिया और उसके बाद मक्के में प्रविष्ट हुए।

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मक्के के सरदार शहर से बाहर निकल गये ताकि वह मुसलमानों के मक्के में दाख़िल होने के दृश्य को न देख सकें जो उनके लिए बहुत कष्टदायक था किन्तु मक्के के अन्य निवासी जिनमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे भी थे शहर ही में रुके रहे ताकि वह मुसलमानों उमरा करते देख सकें।

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पैग़म्बरे इस्लाम मक्के में प्रविष्ट हुए। उन्होंने बड़े ही आदरभाव और प्रेम के साथ मक्केवासियों के साथ व्यवहार किया और उन्होंने मुसलमानों को आदेश किया कि जल्दी से काबे की परिक्रमा करें। उस समय होने वाला उमरा एक प्रकार की उपासना भी थी और शक्ति का प्रदर्शन भी। यह कहा जा सकता है कि आठवीं हिजरी क़मरी में मक्के की विजय का जो बीज बोया गया था उसने इस्लाम के सामने समस्त मक्केवासियों के नतमस्तक होने की भूमिका प्रशस्त कर दी। मुसलमानों ने पूरी शांति के साथ उमरा अंजाम दिया और तीन दिन के बाद मक्के को छोड़ दिया।

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सूरए फ़त्ह की अंतिम आयत में बहुत ही रोचक उदाहरण पेश किया गया है और इसमें बयान किया गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम के मोमिन साथियों की विशेषताएं क्या थीं और उन्होंने इस्लाम के विकास और उसके फैलाव में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

सूरए फ़त्ह की 29वीं आयत में आया है कि मुहम्मद (स) अल्लाह के पैग़म्बर हैं और जो लोग उनके साथ हैं वे अनेकेश्वरवादियों के लिए बहुत कठोर व सख़्त और आपस में बहुत दयालु हैं। तुम उन्हें देखोगे कि ईश्वर के दरबार में सिर झुकाए सजदे में हैं और अपने ईश्वर से कृपा और उसकी दाय तथा उसकी प्रसन्नता की मांग कर रहे हैं। अधिक सजदा करने के कारण उनके चेहरों पर सजदे के निशान पाये जाते हैं, उनका उदाहरण तौरैत में है और यही उनकी विशेषता और गुण इंजील में भी है जैसे कोई खेती हो जो पहले अंकुर निकाले फिर उसे मज़बूत बनाये फिर वह मोटी हो जाए और फिर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए कि किसानों को प्रसन्न करने लगे ताकि उनके माध्यम से अनेकेश्वरवादियों को जलाया जाए और ईश्वर ने ईमान वालों और नेक काम करने वालों को क्षमा याचना और भव्य पारितोषिक का वचन दिया है।

 

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 27 April 16 ، 18:10
Mesam Naqvi

العفاف زينه الفقر، والشكر زينه الغنى .

ترجمه : عفاف ، زينت فقر است و شكر زينت غنا.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 24 April 16 ، 14:45
Mesam Naqvi


لا تستحى من اعطاء القليل فان الحرمان اقل منه .

 
از عطا كردن اندك ، شرم مكن ؛ زيرا محروم كردن ، از آن اندك هم اندك تر است .

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 23 April 16 ، 14:58
Mesam Naqvi


فوت الحاجه اهون من طلبها الى غير اهلها.

ترجمه : به حاجت نرسيدن ، آسان تر است از خواستن آن از نااهل .
چه ناگوار است آن كاميابى كه با تلخى ذلت درآميزد!

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 19 April 16 ، 23:42
Mesam Naqvi

فقد الاحبه غربه
از دست دادن دوستان ، غربت است يعنى چون غريبانه زيستن است .

۱ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 18 April 16 ، 15:20
Mesam Naqvi

اهل الدنيا كركب يسار بهم و هم نيام .

ترجمه : اهل دنيا، چون سوارانى اند كه مى برندشان و آنان در خواب اند.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 17 April 16 ، 16:10
Mesam Naqvi

اذا حييت بتحيه فحى باحسن منها، و اذا اسديت اليك يد فكافئها بما يربى عليها، و الفضل مع ذلك للبادى .

ترجمه : هر گاه به تو تحيت گفته شد، به گونه اى بهتر پاسخ ده . و آن گاه كه دستى به احسان به سويت گشوده شد، به شيوه اى برتر جبران كن . و اما با اين حال ، فضيلت با آغاز كننده است


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۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 16 April 16 ، 09:46
Mesam Naqvi

المراه عقرب حلوه اللسبه
زن ، عقربى است شيرين نيش .
اشاره است به خواهش هاى خودخواهانه رايج در ميان زنان ، كه شوى خويش را گاه به گاه با طرح آن مى آزاراند. اين ، جدا از زن هايى است كه زندگى معقول در پيش مى گيرند و به شوهر به مثابه مزدورى كه وظيفه دارد به خواسته هاى آنان بپردازد، نمى نگرند. حضرت زهرا، سلام الله عليها، همسر امام على ، عليه السلام ، بانوى نمونه اسلام از اين زنان بود.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 15 April 16 ، 16:42
Mesam Naqvi

زبان ، درنده است ؛ اگر به خود وانهاده شود، مى درد.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 14 April 16 ، 07:09
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 13 April 16 ، 16:01
Mesam Naqvi

مال ، منبع شھوت ها است
آن هنگام كه ثروت انباشته شود و در مسير صواب و صلاح جريان نيابد، ثروت اندوز را به وسوسه هاى ناروا و شهوت هاى دلربا فرا مى خواند.



۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 13 April 16 ، 15:27
Mesam Naqvi
۱ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 13 April 16 ، 01:15
Mesam Naqvi

قناعت ، مالى است که فنا نمى پذیرد.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 12 April 16 ، 15:45
Mesam Naqvi

صبر بر دو گونه است : صبر بر آن چه که نمى پسندى و صبر از نداشتن آن چه که دوست دارى .
در صورتى که نداشتن آن چه که دوست دارى ، به خاطر آن باشد که عقل یا شرع اجازه نمى دهد که آن را به دست آورى . پس بر خود سخت مى گیرى و با صبورى از آن چشم مى پوشى


۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 11 April 16 ، 09:42
Mesam Naqvi

هیچ غنایى ، چون عقل نیست و هیچ فقرى چون جهل .
هیچ میراثى چون ادب نیست و هیچ پشتیبانى چون مشورت .

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 10 April 16 ، 19:11
Mesam Naqvi

سخاوت آن است که در ابتدا باشد نه پس از درخواست نیازمند. اما آن چه که پس از درخواست داده مى شود، سخاوت نیست ، بلکه حیاء و ملامت گریزى است یعنى از روى خجالت و یا براى گریز از ملامت مردم به درخواست نیازمند پاسخ مى دهد.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 09 April 16 ، 16:13
Mesam Naqvi


۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 08 April 16 ، 13:09
Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi


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Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 08 April 16 ، 13:05
Mesam Naqvi

شایسته ترین مردم به عفو نمودن ، تواناترین آنان است بر عقوبت کردن .
آن که نتواند کیفر دهد و از روى ناچارى بگذرد کجا - البته این هم شایسته است - و آن توانمندى که بتواند کیفر دهد و از روى بزرگوارى عفو فرماید کجا!

۰ نظر موافقین ۱ مخالفین ۰ 08 April 16 ، 12:56
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 07 April 16 ، 19:40
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 07 April 16 ، 19:29
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 06 April 16 ، 15:48
Mesam Naqvi


۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 06 April 16 ، 15:46
Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi

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Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 06 April 16 ، 15:41
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 06 April 16 ، 15:40
Mesam Naqvi

۰ نظر موافقین ۱ مخالفین ۰ 06 April 16 ، 15:36
Mesam Naqvi

حذر کنید از صولت انسان بزرگوار، اگر گرسنه گردد و به فقر افتد و از انسان لئیم ، اگر سیر شود و به نوایى برسد.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 05 April 16 ، 12:00
Mesam Naqvi

پیروزى ، با تدبیر به دست مى آید و تدبیر با به کار انداختن اندیشه و اندیشه با گردآورى و محافظت از اسرا

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 04 April 16 ، 09:11
Mesam Naqvi

ارزش هر کس به اندازه همت اوست و صداقتش به اندازه مروت ، شجاعتش به اندازه حمیت و پاکدامنى اش به اندازه غیرت او است .

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 03 April 16 ، 08:52
Mesam Naqvi

نزد خدا، کار ناشایستى که ناخشنودت کند، بهتر است از کارهاى شایسته اى که خود پسندت سازد.

۰ نظر موافقین ۰ مخالفین ۰ 02 April 16 ، 20:17
Mesam Naqvi