Shaheede Rabe Group Meerut


नाम व अलक़ाब

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैगम्बर(स.) के नाम पर है। तथा आपकी मुख्य़ उपाधियाँ महदी मऊद ,इमामे अस्र ,साहिबुज़्ज़मान ,बक़ियातुल्लाह व क़ाइम हैं।

जन्म व जन्म स्थान

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 255हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को सामर्रा नामक स्थान पर हुआ था। यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।

माता पिता

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नरजिस खातून हैं।

पालन पोषण

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का पालन पोषण 5वर्ष की आयु तक आपके पिता की देख रेख मे हुआ। तथा इस आयु सीमा तक आप को सब लोगों से छुपा कर रखा गया। केवल मुख्य विश्वसनीय मित्रों को ही आप से परिचित कराया गया था।

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत का समय सन् 260 हिजरी क़मरी से आरम्भ होता है। और इस समय आपकी आयु केवल 5वर्ष थी। हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले एक सभा मे जिसमे आपके चालीस विश्वसनीय मित्र उपस्थित थे ,कहा कि मेरी शहादत के बाद वह (हज़रत महदी) आपके खलीफ़ा हैं। वह क़ियाम करने वाले हैं तथा संसार उनका इनतेज़ार करेगा। जबकि पृथ्वी पर चारों ओर अत्याचार व्याप्त होगा वह उस समय कियाम करेंगें व समस्त संसार को न्याय व शांति प्रदान करेंगें।

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत(परोक्ष हो जाना)

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत दो भागों मे विभाजित है।

(1)ग़ैबते सुग़रा

अर्थात कम समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 260 हिजरी क़मरी मे आरम्भ हुई और329 हिजरी मे समाप्त हुई। इस ग़ैबत की समय सीमा मे इमाम केवल मुख्य व्यक्तियों से भेंट करते थे।

(2)ग़ैबत कुबरा

अर्थात दीर्घ समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 329 हिजरी मे आरम्भ हुई व जब तक अल्लाह चाहेगा यह ग़ैबत चलती रहेगी। जब अल्लाह का आदेश होगा उस समय आप ज़ाहिर(प्रत्यक्ष) होंगे वह संसार मे न्याय व शांति स्थापित करेंगें।

नुव्वाबे अरबा

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने अपनी 69 वर्षीय ग़ैबते सुग़रा के समय मे आम जनता से सम्बन्ध स्थापित करने लिए बारी बारी चार व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि बनाया। यह प्रतिनिधि इमाम व जनता की मध्यस्था करते थे। यह प्रतिनिधि जनता के प्रश्नो को इमाम तक पहुँचाते व इमाम से उत्तर प्राप्त करके उनको जनता को वापस करते थे। इन चारों प्रतिनिधियो को इतिहास मे “नुव्वाबे अरबा ” कहा जाता है। यह चारों क्रमशः इस प्रकार हैं।

(1)उस्मान पुत्र सईद ऊमरी यह पाँच वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।

(2)मुहम्मद पुत्र उस्मान ऊमरी यह चालीस वर्ष तक इमाम की सेवा मे रहे।

(3)हुसैन पुत्र रूह नो बखती यह इक्कीस वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।

(4)अली पुत्र मुहम्मद समरी यह तीन वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे। इसके बाद से ग़ैबते सुग़रा समाप्त हो गई व इमाम ग़ैबते कुबरा मे चले गये।

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम सुन्नी विद्वानों की दृष्टि मे

हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम मे केवल शिया सम्प्रदाय ही आस्था नही रखता है। अपितु सुन्नी सम्प्रदाय के विद्वान भी हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को स्वीकार करते है। परन्तु हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध मे उनके विचारों मे विभिन्नता पाई जाती है। कुछ विद्वानो का विचार यह है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम अभी पैदा नही हुए है व कुछ विद्वानो का विचार है कि वह पैदा हो चुके हैं और ग़ैबत मे(परोक्ष रूप से) जीवन यापन कर रहे हैं।

सुन्नी सम्प्रदाय के विभिन्न विद्वान अपने मतों को इस प्रकार प्रकट करते है।

(1)शबरावी शाफ़ाई अपनी किताब अल इत्तेहाफ़ मे इस प्रकार लिखते हैं कि शिया महदी मऊद के बारे मे विश्वास रखते हैं वह (हज़रत इमाम) हसन अस्करी के पुत्र हैं और अन्तिम समय मे प्रकट होगे। उनके सम्बन्ध मे सही हादीसे मिलती है। परन्तु सही यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और भविषय मे पैदा होगें तथा वह अहलेबैत मे से होंगें।

(2)इब्ने अबिल हदीद मोताज़ली शरहे नहजुल बलाग़ा मे इस प्रकार लिखते हैं कि अधिकतर मोहद्देसीन का विश्वास है कि महदी मऊद हज़रत फ़ातिमा के वंश से हैं।मोतेज़ला समप्रदाय के बुज़ुरगों ने उनको स्वीकार किया है तथा अपनी किताबों मे उनके नाम की व्याख्या की है। परन्तु हमारा विश्वास यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और बाद मे पैदा होंगें।

(3)इज़्ज़ुद्दीन पुत्र असीर 260 हिजरी क़मरी की घटनाओ का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि अबु मुहम्मदअस्करी (इमामे अस्करी) 232 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए और 260 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। वह मुहम्मद के पिता हैं जिनको शिया मुनतज़र कहते हैं।

(4)इमादुद्दीन अबुल फ़िदा इस्माईल पुत्र नूरूद्दीन शाफ़ई कहते है इमाम हादी का सन् 254 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवास हुआ। वह इमाम हसन अस्करी के पिता थे। इमाम अस्करी बारह इमामों मे से ग्यारहवे इमाम हैं वह उन इमामे मुन्तज़र के पिता हैं जो 255 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए।

(5)इब्ने हजरे हीतमी मक्की शाफ़ई अपनी किताब अस्सवाइक़ुल मोहर्रेक़ाह मे लिखते हैं कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सामर्रा मे स्वर्गवासी हुए उनकी आयु 28 वर्ष थी। कहा जाता है कि उनको विष दिया गया। उन्होने केवल एक पुत्र छोड़ा जिनको अबुलक़ासिम मुहम्मद व हुज्जत कहा जाता है। पिता के स्वर्ग वास के समय उनकी आयु पाँच वर्ष थी । लेकिन अल्लाह ने उनको इस अल्पायु मे ही इमामत प्रदान की वह क़ाइमे मुन्तज़र कहलाये जाते हैं।

(6)नूरूद्दीन अली पुत्र मुहम्मद पुत्र सब्बाग़ मालकी अपनी किताब मे लिखते है कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत दो वर्ष दो वर्ष थी ।उन्होने अपने बाद हुज्जत क़ाइम नामक एक बेटे को छोड़ा। जिनका सत्य पर आधारित शासन की स्थापना के लिए इंतिज़ार( प्रतीक्षा) किया जायेगा। उनके पिता ने लोगों से गुप्त रख कर उनका पालन पोषण किया। तथा ऐसा अब्बासी शासक के अत्याचार से बचने के लिए किया गया था। ,,

(7)अबुल अब्बास अहम पुत्र यूसुफ़ दमिश्क़ी क़रमानी अपनी किताब अखबारूद्दुवल वा आसारूल उवल की ग्यारहवी फ़स्ल मे लिखते हैं कि खलफ़े सालेह इमाम अबुल क़ासिम मुहम्मद इमाम अस्करी के बेटे हैं। जिनकी आयु उनके पिता के स्वर्गवास के समय केवल पाँच वर्ष थी। परन्तु अल्लाह ने उनको हज़रत याहिय की तरह बचपन मे ही हिकमत प्रदान की। वह मध्य क़द सुन्दर बाल सुन्दर नाक व चोड़े माथे वाले हैं।

इस से ज्ञात होता है कि इस सुन्नी विद्वान को हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म पर पूर्ण विश्वास था यहाँ तक कि उन्होने आपके शारीरिक विवरण का भी उल्लेख किया है। और खलफ़े सालेह की उपाधि के साथ उनका वर्णन किया है।

(8)हाफ़िज़ अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद पुत्र य़ूसुफ़ कन्जी शाफ़ई अपनी किताब किफ़ायातुत तालिब के अन्तिम भाग मे लिखते हैं कि इमाम अस्करी सन् 260 हिजरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी तिथि को स्वर्गवासी हुए व उन्होने एक पुत्र छोड़ा जो इमामे मुन्तज़र हैं। ,,

(9)ख़वाजा पारसा हनफ़ी अपनी किताब फ़ज़लुल ख़िताब मे इस प्रकार लिखते हैं कि “अबु मुहम्द हसन अस्करी ने अबुल क़ासिम मुहम्मद मुँतज़र नामक केवल एक बेटे को अपने बाद इस संसार मे छोड़ा जो हुज्जत क़ाइम व साहिबुज़्ज़मान से प्रसिद्ध हैं। वह 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15 वी तिथि को पैदा हुए व उनकी माता नरजिस थीं। ,,

(10)इब्ने तलहा कमालुद्दीन शाफ़ई अपनी किताब मतालिबुस्सऊल फ़ी मनाक़िबिर रसूल मे लिखते हैं कि “अबु मुहम्मद अस्करी के मनाक़िब (स्तुति या प्रशंसा) के बारे इतना कहना ही अधिक है कि अल्लाह ने उनको महदी मऊद का पिता बनाकर सबसे बड़ी श्रेष्ठता प्रदान की हैं। वह आगे लिखते हैं कि महदी मऊद का नाम मुहम्मद व उनकी माता का नाम सैक़ल है। महदी मऊद की अन्य उपाधियाँ हुज्जत खलफ़े सालेह व मुँतज़र हैं। ,,

(11)शम्सुद्दीन अबुल मुज़फ़्फ़र सिब्ते इब्ने जोज़ी अपनी प्रसिद्ध किताब तज़किरातुल ख़वास मे लिखते हैं “कि मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र मूसा पुत्र जाअफ़र पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र हुसैन पुत्र अली इब्ने अबी तालिब की कुन्नियत अबुल क़ासिम व अबु अबदुल्लाह है। वह खलफ़े सालेह ,हुज्जत ,साहिबुज्जमान ,क़ाइम ,मुन्तज़र व अन्तिम इमाम हैं।अब्दुल अज़ीज़ पुत्र महमूद पुत्र बज़्ज़ाज़ ने हमको सूचना दी है कि इब्ने उमर ने कहा कि हज़रत पैगम्बर ने कहा कि अन्तिम समय मे मेरे वंश से एक पुरूष आयेगा जिसका नाम मेरे नाम के समान होगा व उसकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत के समान होगी। वह संसार से अत्याचार समाप्त करके न्याय व शाँति की स्थापना करेगा। यही वह महदी हैं। ,,

(12)अबदुल वहाब शेरानी शाफ़ई मिस्री अपनी प्रसिद्ध किताब अल यवाक़ीत वल जवाहिर मे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि वह इमाम हसन की संतान है उनका जन्म सन् 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को हुआ। वह ईसा पुत्र मरीयम से भेँट करेगें व जीवित रहेगें। हमारे समय (किताब लिखने का समय) मे कि अब 958 हिजरी क़मरी है उनकी आयु 706 वर्ष हो चुकी है।

हज़रत हुज्जत (अ.स.) के कथन

१. मेरा वुजूद (अस्तित्व) ग़ैबत में भी लोगों के लिए ऐसा ही मुफ़ीद (लाभकारी) है जैसे आफ़ताब (सूर्य) बादलों के ओट (पीछे) से।

२. मैं ही महदी हूँ मैं ही क़ायमे ज़माना हूँ।

३. मैं ज़मीन को अद्ल (न्याय) व इन्साफ़ से इस तरह भर दूँगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौरर से भर गई है।

४. जो चीज़ तुम्हारे लिये मुफ़िद (लाभकारी) न हो उसके लिये सवाल (प्रशन) मत करो।

५. ज़ुहूर (प्रकटता) में ताजील (शिघ्रता) के लिये दुआ (प्रथना) माँगों क्योंकि उसी में तुम्हारी भलाई है।

६. जो लोग हमारे अमवाल (अमल का बहु वचन) को मुशतबा और मख़लूत (मिलाये हुए) किये हुए हैं जो कोई भी उसमें से ज़र्रा बराबर बिला इस्तहक़ाक (बग़ैर हक़ के) खोयेगा गोया उसने आग से अपना शिकम पुर किया ( पेट भर लिया) ।

७. मैं अहले ज़मीन (धरती पर रहने वालों) के लिये उसी तरह बायसे अमान (शान्ति का कारण) हूँ जिस तरह सितारे अहले आसमान (आसमान पर रहने वालों) के लिये।

८. हमारा इल्म तुम्हारे सारे हालात पर मोहीत (घेरे हुए) है और तुम्हारी कोई चीज़ हम से पोशीदा (छीपी) हुई नहीं।

९. हम तुम्हारी ख़बरगीरी (देखरेख) से ग़ाफ़िल (बेपरवाह) नहीं और न तुम्हारी याद को अपने दिल से निकाल सकते हैं।

१०. हर वह काम करो जो तुम्हें हम से नज़दीक (क़रीब) करे और हर उस अमल से परहेज़ करो (बचो) जो हमारे लिये बारे ख़ातिर और नाराज़गी का सबब हो।

११. तुममे से जो कोई तक़वा ए इलाही (ईशवर का भय) इख़्तेयार (अपनायेगा) करेगा और मुस्तहक़ (हक़दार) तक उसके हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) पहुँचायेगा वह आने वाले फ़ित्नों (झगड़ों) से महफ़ूज़ रहेगा (बचा रहेगा) ।

१२. अगर हमारे चाहने वाले अपने अहद व पैमान की वफ़ा करते तो हमारी मुलाक़ात में ताख़ीर (देर) न होती और हमारी ज़ियारत उन्हें जल्द नसीब होती.

१३. हमें तुमसे कोई चीज़ दूर नहीं करती मगर वह जो हमें नागवार और नापसन्द है।

१४. हम तुम्हारे अमवाल (माल का बहु वचन ,यह ख़ुम्स की ओर इशारा है) को सिर्फ़ इसलिए क़ुबूल (स्वीकार) करते हैं के तुम पाक हो जाओ हमें जिसका जो चाहे अदा करे जो चाहे अदा न करे क्योंकि जो कुछ ख़ुदावन्दे आलम ने हमें अता फ़रमाया (दिया) है वह उससे बेहतर है जो तुम्हें दिया है।

१५. नमाज़ शैतान को रूसवा (निंदित) कर देती है। नमाज़ पढ़ो और शैतान को रूसवा करो।

१६. जो मेरा इन्कार करे वह मुझसे नहीं और उसका अन्जाम पिसरे नूह (नूह जो नबी थे उनका पुत्र) का अन्जाम है।

१७. मसाएल में हमारे रावियों की तरफ़ रूजु करो क्योंकि वह मेरी तरफ़ से तुम पर हुज्जत (तर्क ,दलील) हैं।

१८. ताज्जुब है उन लोगों की नमाज़ कैसे क़ुबूल होती है जो इन्ना अन्ज़ल्ना की तिलावत नहीं करते (नहीं पढ़ते)।

१९. नमाज़ के लिये जिन सूरतों के फ़ज़ाएल बयान किये गये हैं वह अपनी जगह पर अलबत्ता अगर कोई शख़्स सूरा ए इन्ना अन्ज़लना और सुरा ए क़ुल हो वल्लाह की तिलावत करे तो उसे इन सूरतों का सवाब भी मिलेगा और जिन सूरतों के बदले पढ़ेगा उसका भी।

२०. मलऊन है मलऊन है वह शख़्स जो नमाज़े मग़रिब में इतनी ताख़ीर (देर) करे के तारे ख़ूब खिल जायें।

२१. हमारे अलावा जिसने अपनी हक़्क़ानियत (सच्चाई) का दावा किया वह झूठा है।

२२. क्या लोग यह बात नहीं जानते के नबी (अ.स.) के बाद उनकी हिदायत (मार्ग दर्शन) के लिये आइम्मा (अ.स.) का इन्तेज़ाम (प्रबन्ध) किया गया है।

२३. यह लोग कैसे फ़ित्ने (झगड़े) में घिर गये हैं क्या उन्होंने अपने दीन को छोड़ दिया है।

२४. यह लोग हक़ से क्यों अनाद (दुश्मनी) रखते हैं क्या हक़ को पहचानने के बाद उसे भुला दिया है।

२५. क्या तुम नहीं जानते के ज़मीन कभी हुज्जते ख़ुदा (ईशवरीय तर्क ,दलील) से ख़ाली नहीं रहती।

२६. तमाम (सभी) लोग यह बात समझ लें के हक़ हमारे साथ है और हम में है।

२७. मैं रूए ज़मीन पर बक़िय्यतुल्लाह (ईशवरीय चिन्ह) हूँ और दुश्मनाने ख़ुदा (ईशवर के शत्रु) से इन्तेक़ाम (बदला) लूँगा।

२८. जो लोग मेरे ज़ुहूर (प्रकटता) के लिये वक़्त (समय) मोअय्यन (निर्धारित) करते हैं वह झूठे हैं.

२९. छींक का आना मौत से कम से कम 3दिन की ज़मानत है।

३०. मैं ख़ातिमुल औलिया हूँ और मेरे ज़रिये ख़ुदावन्दे आलम मेरे चाहने वालों को बलाओं से निजात (मुक्ति) देगा।

३१. ख़ुदावन्दे आलम ने यह दुनिया बेकार नहीं पैदा की है।

३२. ख़ुदावन्दे आलम ने जिन्हें हिदायत (निर्देश) का ज़रिया बनाया है उनको फ़ज़ीलत भी दी है।

३३. ख़ालिके कायनात (संसार को पैदा करने वाला) ने अपने औलिया (वली का बहु वचन) के ज़रिये दीन को ज़िन्दा किया।

३४. आइम्मा (अ.स.) को हर गुनाह (प्रत्येक पाप) से पाक और हर बुराई से दूर रखा है।

३५. औलिया इल्म के ख़ज़ाने और हिकमत (दानाई) का मअदन (खान) हैं।

३६. जो इमामत के झूठे दावेदार होंगे उनका नक़्स (कीना) बहुत जल्द मालूम हो जायेगा।

३७. जब हुक्मे ख़ुदा होगा हक़ ज़ाहिर होगा और बातिल मिट जायेगा।

३८. (दादी) फ़ातिमा ज़हरा (स 0)की ज़िन्दगी हमारे लिये नमूना है।

३९. ख़ुदा हम सब का वली (सहायक) है।

४०. जिसने हमारे नुमायन्दे को रद किया उसने गोया मुझे रद्द किया।

।।अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद व अज्जिल फ़राजहुम।।

موافقین ۰ مخالفین ۰ 16/03/02
Mesam Naqvi

نظرات  (۰)

هیچ نظری هنوز ثبت نشده است

ارسال نظر

ارسال نظر آزاد است، اما اگر قبلا در بیان ثبت نام کرده اید می توانید ابتدا وارد شوید.
شما میتوانید از این تگهای html استفاده کنید:
<b> یا <strong>، <em> یا <i>، <u>، <strike> یا <s>، <sup>، <sub>، <blockquote>، <code>، <pre>، <hr>، <br>، <p>، <a href="" title="">، <span style="">، <div align="">
تجدید کد امنیتی