हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व अलक़ाब (उपाधियाँ)
हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधियाँ हादी व नक़ी हैं।
माता पिता
आपके पिता हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत समाना थीं।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 212 हिजरी क़मरी मे ज़िल- हिज्जाह मास की (15) वी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
इमामत
जब वर्ष २२० में उनके पिता इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की शहादत हुई तो इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन जैसे महान कार्य का दायित्व उनके कांधों पर आ गया।
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) के कथन
१. ख़ुदपसन्दी इन्सान की बदबख़्ती और हलाकत का सबब है।
२. जो शख़्स नेमाते इलाही (ईश्वरीय ईनाम) का शुक्रगुज़ार करता है उस पर नेमाते इलाही का इज़ाफ़ होता (बढ़ जाता) है।
३. मैं तुम लोगों को वसियत करता हूँ के हमेशा रास्त गो रहना अहद को वफ़ा करना अमानत (धरोहर) को अदा करना और यतीमों ( जिसका पिता न हो) की सरपरस्ती करना।
४. नेक काम मर्गे मफ़ाजात से बचाते हैं।
५. दूसरो के अमवाल (माल का बहु वचन) में लालच न करो ताकि लोग तुम्हें पसन्द करें।
६. नादानी से ज़्यादा कोई फ़ख़्र नहीं और अक़्ल (बुध्दि) से ज़्यादा फ़ायदा रसाँ (लाभ पहुँचाने वाला) कोई माल नहीं।
७. अल्लाह से डरो ताकि दूसरों से भी अमान (सुरक्षा) में रहो।
८. तीन चीज़ें मोहब्बत पैदा करती हैं- 1.मुआशेरत (समाज) में इन्साफ़ ,2.सख़्तियों में हमदर्दी और 3.खुले दिल से लोगों से मोहब्बत ।
९. ख़्वाहिशे नफ़्स (आत्म इच्छा) पर क़ाबू पा लेना दीनदारी की अलामत (चिन्ह) है।
१०. दो रूई (दोहरी बातें) और चुग़लख़ोरी से परहेज़ करो क्योंकि उसी से लोगों के दिलों में किना (द्वेष) पैदा होता है और तुम्हारी शख़्सियत (व्यक्तित्व) घटती जाती है।
११. कभी भी अपने बरादरे दीनि से इन्तेक़ाम (बदला) लेने की कोशिश (प्रयास) न करो अगरचे उसने बदी की हो।
१२. जो शख़्स (मनुष्य) सिर्फ़ अपनी अक़्ल पर भरोसा करे और मशविरा (परामर्श) न करे उससे लग़्ज़िश (त्रुटि) हो सकती है।
१३. जो सच्चा मुसलमान हो परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) रहेगा।
१४. ख़ुदा की रहमत है उस पर जिसे जब नेक काम की दावत दी जाये तो क़बूल (स्वीकार) कर ले।
१५. जब तुम से कोई मशविरा (राय) करे तो उसे सही रहनुमाई (उचित मार्गदर्शन) करो।
१६. बेहतरीन सदक़ा यह है कि जो दोस्त जुदाई (प्रथकता) का शिकार हो गये हैं उनमें इस्लाह (शुध्दि) कर दो।
१७. अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) से रहनुमाई हासिल करो और उनके मशविरे से सरताबी न करो वरना पशेमान होना पड़ेगा।
१८. लोगों से इज़्हारे मोहब्बत (प्रेम प्रकट) करो ताकि तुमको भी दोस्त रखें।
१९. क्या कहना उस शख़्स का जो अक़्लमन्दों और दानिशमन्दों (बुध्दिमानों) का हमनशीं (साथी) है।
२०. जो ज़माने से तजुर्बा हासिल करता है वह दुनिया वालों के फ़रेब (धोके) में नहीं आता।
२१. ख़ुशख़ल्की (अच्छा तरीक़ा) और कुशादा रूई (सत्य व्यवहार) दोस्ती का बायस (कारण) और मोहब्बत हासिल करने का ज़रिया है।
२२. जो चीज़ें यहाँ हलाल ज़रिये से हासिल की गईं उसका भी वहाँ हिसाब होगा।
२३. हर चीज़ का एक सुतून (खम्भा) होता है दीन का सुतून इल्म व दानिश (बुध्दि) है।
२४. जो शख़्स ख़ुदपसन्दी और ख़ुदखाँ (अपनी प्रशंसा चाहने वाला) होता है उस पर ग़ुस्सा करने वाले भी ज़्यादा होगें।
२५. छुप कर गुनाह करने से डरो क्योंकि उस वक़्त का देखने वाला ही फ़ैसला करने वाला है।
२६. दूर अन्देश वह है जो फ़ुज़ूल ख़र्ची से बचे और इसराफ़ (दुरूपयोग) से दूर रहे।
२७. जिसके पास अमानत हो वह उसके मालिक तक पहुँचायें।
२८. इलाही नेमात पर ग़ौर करना एक अच्छी इबादत है।
२९. सख़ावत मोहब्बत पैदा करती है और अख़लाक (शिष्टाचार) इन्सान को भी आरास्ता करती है।
३०. कीना परवरी (मन में शत्रुता) पस्ती की अलामत है और इन्सान की अज़मत (बड़ापन) कम करती है।
३१. औलाद जब अपने माँ बाप को मोहब्बत की नज़रों से देखे तो यह इबादत है।
३२. इज़्ज़त के बाद ज़िल्लत उतनी सख़्त है जितना इक़्तेदार मसर्रत आवर।
३३. गुनाहगारों (पापियों) के लिये तौबा (प्रायश्चित) कर लो।
३४. जिसकी निगाहें दूसरे के माल की तरफ़ होती हैं उसका ग़म ज़्यादा और अफ़सोस फ़रावां रहता है।
३५. जब दो मुसलमान आपस में मुलाक़ात करके मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करते हैं तो उनके गुनाह ख़ुश्क पत्तों की तरह गिरते है।
३६. हमेशा दूसरोंक की कामयाबी (सफ़लता) और आक़बत ब-ख़ैर होने की दुआ करो ताकि वह चीज़ें तुम अपने में पाओ।
३७. मेज़ाह (मज़ाक़) वेक़ार (सम्मान) व हैयबत को कम कर देता है जबकि सुकूत (ख़ामोशी) वेक़ार (सम्मान) में इज़ाफ़े (बढ़ाने) का बायस (कारण) है।
३८. जवानों में से जो क़ुदरत रखता हो अज़्दवाज (विवाह) करे क्योंकि अज़्दवाज पाकदामनी का मोजिब (कारण) है।
३९. मालियात (माल का बहु वचन) के ज़मन में हमेशा अपने से नीचे लोगों से मवाज़ना (मुक़ाबला) करो न के बलन्द लोगों से।
४०. आख़ेरत (परलोक) का महसूल अमले सालेह (अच्छा कार्य) हैं और दुनिया का महसूल माल व औलाद।
शहादत (स्वर्गवास)
तत्कालीन अब्बासी शासक मोतज़ के आदेश पर एक षडयंत्र के अन्तर्गत ३ रजब २५४ हिजरी क़मरी को इमाम को शहीद कर दिया गया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के समाचार ने अत्याचारग्रस्त जनता को बहुत दुखी किया।
उनकी शहादत का समाचार मिलते ही बड़ी संख्या में लोग उनके घर पर एकत्रित हुए और पूरा नगर उनकी शहादत के शोक में डूब गया।
समाधि
हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम की समाधि बग़दाद के समीप सामर्रा नामक स्थान पर है। जहाँ लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन कर आपको सलाम करते हैं।
।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद।।