Shaheede Rabe Group Meerut



विलादत

हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब 57 हिजरी को जुमा के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा हुऐ।

अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे तशरीफ लाऐ तो आबाओ अजदाद की तरह घर मे गैब की आवाज़े आने लगी और जब नो महीने पूरे हुऐ तो फरीश्तो की बेइंतेहा आवाज़े आने लगी और शबे विलादत एक नूर जाहिर हुआ और आपने विलादत के बाद आसमान का रूख किया और (हजरत आदम की तरह) तीन बार छींके और खुदा की हम्द बजा लाऐ , पूरे एक दिन और रात आपके हाथ से नूर निकलता रहा। आप खतना शुदा , नाफ बुरीदा और तमाम गंदगीयो से पाक पैदा हुऐ।

(जिलाउल उयून पेज न. 259-260)

नाम , लक़ब और कुन्नीयत

सरवरे कायनात रसूले खुदा (स.अ.व.व) और लोहे महफूज़ के मुताबिक आपका नाम मौहम्मद था और आपकी कुन्नीयत अबुजाफर थी और आपके बहुत सारे लक़ब थे कि जिन मे बाक़िर , शाकिर , हादी ज़्यादा मशहूर है।

(शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181)

लक़बे बाक़िर की वजह

बाक़िर बकरः से निकला है और इसका मतलब फैलाने वाला या शक़ करने देने वाला है।

(अलमुनजिद पेज न. 41)

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम को बाक़िर इस लिऐ कहा जाता है कि आपने उलूम को लोगो के सामने पेश किया और अहकाम की हक़ीकतो और हिक्मतो के उन खज़ानो को लोगो के सामने जाहिर किया कि जिनके बारे मे कभी किसी मे बहस न की थी।

(शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181)

आपके ज़माने के बादशाह

आप 57 हि. मे माविया इब्ने अबुसुफयान के जमाने मे पैदा हुऐ। 60 हि.मे यजीद बादशाह बना फिर 64 हि. मे माविया बिन यज़ीद बादशाह बना फिर मरवान फिर अब्दुल मलिक बिन मरवान फिर 86 हि.मे वलीद बिन अब्दुल मलिक खलीफा बना और इसी ने 95 हि मे इमाम सज्जाद को शहीद कराया उसके बाद 96 हि. मे सुलेमान बिन अब्दुल मलिक बादशाह बना और फिर उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ , यज़ीद बिन अब्दुल मलिक और हश्शाम एक के बाद एक खलीफा बनते रहे।

(आलामुल वुरा पेज न. 156)

हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम करबला मे

आपकी उम्र अभी दो तीन साल ही थी कि आपको अपने दादा और वालिद के साथ अपने वतने अज़ीज़ मदीनाऐ मुनव्वरा को छोड़ना पड़ा और मोहर्रम सन् 61 हि. को करबला मे तशरीफ लाऐ और मसाऐबे करबला व शाम और कूफा के गवाह बने।

और एक साल कूफा मे क़ैद मे रहने के बाद 8 रबीउल अव्वल 62 हि. को मदीना वापस हुऐ।

रसूले अकरम का सलाम

इतिहासकारो का कहना है कि सरवरे कायनात (स.अ.व.व) एक दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अपनी गोद मे लिऐ हुऐ प्यार कर रहे थे तो आपके खास सहाबी हज़रत जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी आ गऐ।

रसूले खुदा (स.अ.व.व.) ने इरशाद फरमायाः

ऐ जाबिर। मेरे इस फरज़न्द की नस्ल से एक बच्चा पैदा होगा। जो इल्मो हिकमत से भरपूर होगा और ऐ जाबिर तुम उस बच्चे का जमाना पाओगे और उस वक्त तक ज़िन्दा रहोगे कि जब तक वो इस दुनिया मे न आ जाऐ।

ऐ जाबिर। देखो जब उस से मिलना तो मेरा सलाम उसे कह देना।

जनाबे जाबिर ने इस खबर और भविष्यवाणी को पूरे दिलो दिमाग़ से सुना और उसी वक्त से इस खुश गवार वक्त का इंतेज़ार करने लगे यहा तक कि इस इंतेज़ार मे आप की आखे पथरा गई और आँखो का नूर जाता रहा।

जब तक आपको दिखाई देता था आप इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम को हर महफिल और मजलिस मे तलाश करते रहे और जब आपकी आँखो का नूर चला गया तो आप आपने इमाम को पुकारना शूरू कर दिया। यहा तक कि लोग आपके दिमाग़ पर शक करने लगे।

और आखिरे कार वो वक्त भी आ गया कि आप पैग़ामे मोहम्मदी को इमाम की खिदमत मे पहुँचाने मे कामयाब हो गऐ।

रावी कहता है कि मैं जनाबे जाबिर के पास बैठा हुआ था तभी देखा कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम तशरीफ ला रहे है और आपके साथ इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम भी है।

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम से फरमाया कि बेटा अपने अम्मू जनाबे जाबिर की पेशानी पर बोसा दो।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फौरन जनाबे जाबिर की पेशानी पर बोसा दिया और जनाबे जाबिर ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम को अपने सीने से लगा लिया और कहने लगे कि ऐ रसूल अल्लाह के फरज़न्द आपको आपके दादा रसूले खुदा मौहम्मदे मुस्तुफा ने सलाम कहा है।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया कि ऐ चचा जाबिर उन पर और आप पर भी मेरा सलाम हो।

इसके बाद जनाबे जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम से अपने लिऐ शिफाअत के लिऐ ज़मानत की दरखास्त की और हजरत ने क़ुबुल फरमाई।

(शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181)

सात साल की उम्र मे इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का हज

रावी बयान करता है कि मै हज के लिऐ जा रहा था। रास्ता खतरनाक और अंधेरा बहुत ज्यादा था। जैसे ही मे एक सहरा मे दाखिल हुआ तो एक तरफ से कुछ रोशनी की एक किरन नज़र आई। एक दम से एक सात साला बच्चा मेरे क़रीब आया और उसने सलाम किया। मैने सलाम का जवाब दिया और उससे पूछा कि तुम कौन हो , कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो और तुम्हारा ज़ादे सफर क्या है।

उसने जवाब दिया कि मै खुदा की तरफ से आ रहा हुँ और खुदा की तरफ जा रहा हुँ। मेरा ज़ादे सफर तक़वा है और मै अरबी नस्ल हुँ और क़ुरैश मे से अलवी खानदान से हुँ और मेरा नाम मौहम्मद इब्ने अली इब्ने हुसैन इब्ने अली इब्ने अबुतालिब है।

रावी कहता है कि ये कह कर न जाने वो कहाँ गायब हो गया।

(शवाहेदुन नबुवत पेज न. 183)

हज़रत इमाम बाक़िर और इस्लाम मे सिक्के की ईजाद

मशहूर इतिहासकार ज़ाकिर हुसैन लिखते है कि अब्दुल मलिक बिन मरवान ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सलाह से इस्लामी सिक्के को जारी किया। इस से पहले इस्लामी मुल्को मे भी ईरान और रोम का सिक्का चलता था।

इस वाकेये को अल्लामा दमीरी इस तरह नक्ल करते है कि अब्दुल मलिक बिन मरवान ने अपने दौरे हुकुमत मे मिस्र से आने वाले कपड़े और काग़ज़ पर “बाप , बेटा और रूहुल क़ुद्स ” (कि जो ईसाईयो का ट्रेडमार्क था) को हटवा कर “अल्लाह गवाही देता है कि उसके सिवा कोई खुदा नही है ” लिखवा दिया था कि जो बादशाहे रोम को बहुत बुरा लगा था तो उसने अब्दुल मलिक बिन मरवान से पहले ट्रेडमार्क के बाकी रखने की दरखास्त की लेकिन अब्दुल मलिक बिन मरवान ने उसका कोई जवाब न दिया जिसके नतीजे मे शाहे रोम ने अब्दुल मलिक बिन मरवान को खत लिखा कि अगर तुने मेरी बात न मानी तो मे इस्लामी मुल्को मे चलने वाले अपने सिक्के पर तुम्हारे नबी को गालिया लिखवा दूँगा।

ये सुन कर अब्दुल मलिक सर पकड़ कर बैठ गया और तमाम उलामा से मशविरा किया लेकिन किसी से इस मसले का हल न निकल पाया तो उसे अहलैबैत रसूल के दर पर पनाह ली और इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम को बुलवा कर आप से इस मसले के हल की दरखास्त की।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने उसे इस्लामी सिक्का छापने की राय दी और उसे बताया कि सिक्के कैसे और किस तरह और कितने वज़न का छपेगा और इमाम ने हुक्म दिया कि सिक्के के एक तरफ कलमऐ तोहीद लिखा जाऐ और दूसरी तरफ रसूले खुदा के नाम के साथ सिक्के के छपने के सन् को लिखा जाऐ।

आपके हुक्म पर अमल किया गया और सिक्का छप कर इस्लामी मुल्को मे फैल गया और साथ ही साथ इमाम के मशविरे से अब्दुल मलिक बिन मरवान ने रोमी सिक्के के लेन-देन पर पाबंदी लगा दी।

जब शाहे रोम को इन सब बातो को पता चला तो वो चुप बैठने के सिवा कुछ न कर सका।

(हयातुल हैवान जिल्द न 1)

हश्शाम का सवाल और उसका जवाब

अमवी खलीफा हश्शाम बिन अब्दुल मलिक खलीफा बनते ही हज के लिऐ गया। उसने वहा इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को देखा कि आप लोगो को वाजो- नसीहत फरमा रहे है। ये देख कर हश्शाम की खानदानी दुश्मनी ने करवट ली औऱ उसने दिल ही दिल सोचा कि इन्हे यही पर ज़लील करना चाहिये।

इसी इरादे से उसने एक शख्स को इमाम की खिदमत मे भेजा कि जाकर कहो कि खलीफा पूछ रहे है कि क़यामत के दिन आखरी फैसले से पहले लोग क्या खाऐंगे और क्या पीयेंगे।

इमाम ने जवाब दियाः जहा हश्रो नश्र होगा वहा मेवेदार दरख्त होंगे लोग इन्ही पेड़ो के फलो को इस्तेमाल करेगे।

बादशाह ने जवाब सुनकर ये कहा कि ये बिल्कुल ग़लत है। क्योकि कयामत के दिन लोग अपनी परेशानीयो और मुसीबतो मे लगे होगे। ऐसे मे खाने पीने की किसे याद आऐगी।

क़ासिद ने यही बात जाकर इमाम से नक़्ल कर दी।

इमाम ने जवाब दिया कि जाओ और बादशाह से कह दो कि तुमने कुरआन भी पढ़ा है या नही।

कि जहन्नुम के लोग जन्नत वालो से कहेंगे कि हमे पानी और कुछ नेमते दे दो कि (कुछ) खा और पी ले। इस वक्त वो (जन्नत वाले) कहेगे कि काफिरो पर जन्नत की नेमते हराम है।

(पारा न. 8 रूकूअ न. 13)

तो जब जहन्नुम के लोग भी खाना-पीना नही भूलेंगे तो क़यामत मे कैसे भूल जाऐगे जिसमे जहन्नुम से कम सख्तीयाँ होगी और वो उम्मीद और जन्नतो जहन्नुम के दरमियान होंगे।

इमाम का जवाब सुनकर हश्शाम शरमिन्दा हो गया।

(तारीखे आईम्मा पेज न. 414)

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम और ईसाई पादरी

एक बार इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।

थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम अलैहिस्सलाम पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से 

इमाम अलैहिस्सलाम ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।

पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से

इमाम अलैहिस्सलाम ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।

पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे

इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।

पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगेक्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है

इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमायाः हाँइसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।

पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।

इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।

उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।

इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमायाः बिस्मिल्लाह सवाल करे।

पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।

क्या इसकी कोई दलील है

इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।

पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम अलैहिस्सलाम से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम अलैहिस्सलाम से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः

ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।

खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।

इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।

(जिलाउल उयून पेज. न. 261)

शहादत

अगरचे आप अपनी इल्मी खिदमात से इस्लाम को फैला रहे थे लेकिन फिर खानदाने बनी उमय्या की दुश्मनी और जिहालत की वजह से हश्शाम बिन अब्दुल मलिक ने आपको ज़हर से शहीद करा दिया और आप 7 ज़िलहिज 114 हि. को सोमवार के मदीनाऐ मुनव्वरा मे दरजाऐ शहादत पर फाएज हो गऐ। उस वक्त आपकी उम्र 57 साल थी।

(जिलाउल उयून पेज. न. 264)

मजारे मुक़द्दस

आपकी नमाजे जनाज़ा इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने पढ़ाई और आपको जन्नुत बक़ी मे दफ्न किया गया।

(जिलाउल उयून पेज. न. 261)

औलाद

इतिहासकारो ने आपके पाँच बेटे और तीन बेटीयो का जिक्र किया है। जिनके नाम ये है।

1. इमाम जाफर सादिक़

2. अब्दुल्लाह अफतह

3. इब्राहीम

4. अब्दुल्लाह

5. अली

6. लैला

7. जैनब

8. उम्मे सलमा

(इरशाद पेज न. 294)

موافقین ۰ مخالفین ۰ 16/02/23
Mesam Naqvi

نظرات  (۰)

هیچ نظری هنوز ثبت نشده است

ارسال نظر

ارسال نظر آزاد است، اما اگر قبلا در بیان ثبت نام کرده اید می توانید ابتدا وارد شوید.
شما میتوانید از این تگهای html استفاده کنید:
<b> یا <strong>، <em> یا <i>، <u>، <strike> یا <s>، <sup>، <sub>، <blockquote>، <code>، <pre>، <hr>، <br>، <p>، <a href="" title="">، <span style="">، <div align="">
تجدید کد امنیتی