Shaheede Rabe Group Meerut

नाम व उपाधियाँ

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधियां सज्जाद व ज़ैनुल आबेदीन हैं। सज्जाद अर्थात अत्यअधिक सजदे करने वाला।  ज़ैनुल आबेदीन अर्थात इबादत की शोभा।

 

माता पिता

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के पिता  हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हैं जो हज़रत इमाम अली के दूसरे पुत्र थे। तथा आपकी माता हज़रत शहरबानो हैं। कुछ इतिहासकारों ने आपकी माता का नाम ग़िज़ाला भी लिखा है।

 

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 38 हिजरी मे जमादुल ऊला मास की पनद्रहवी (15) तारीख को मदीना नामक पवित्र शहर मे हुआ था।

 

तारीख़ के सफ़हात पर ऐसे सरफ़रोशों की कमी नहीं जिन के जिस्म को तो वक्त के ज़ालिमों और जल्लादों ने क़ैदी तो कर दिया लेकिन उन की अज़ीम रुह, उन के ज़मीर को वह क़ैदी बनाने से आजिज़ रहे, ऐसे फ़ौलादी इन्सान जो ज़ंजीरों में जकड़े हुए भी अपनी आज़ाद रुह की वजह से वक्त के फ़िरऔन व शद्दाद को ललकारते रहे, तलवारों ने उन के सर जिस्म से जुदा तो कर दिये लेकिन एक लम्हे के लिये भी उन की रुह को तस्ख़ीर न कर सके, ऐसे इन्सान जिन की आज़ाद रुह, आज़ाद ज़मीर, और आज़ाद फ़िक्र के सामने तेज़ो तुन्द असलहे भी नाकारा साबित हुए.....जब उन की ज़बाने काटी गईं तो उन लोगों ने नोके क़लम से मुक़ाबला किया और जब हाथ हाट दिये गए तो अपने ख़ून के क़तरों से बातिल को ललकारा जब वक़्त के फ़िरऔन जिन की हर ज़माने में शक्लें बदलती होती हैं और मक़्सद एक होता है उन को यूँ डराते हैं कि (हमारी सरपरस्ती क़ुबूल न करने के तौर पर तुम्हारे हाथ पैर काटे जांएगे और फ़ाँसी का फ़न्दा तुम्हारे लिया आमादा है) तो तारीख़ के तसल्सुल में उन सरफ़रोशों का जवाब एक ही रहा है कि (तुम वक्त के फ़िरऔन जो कुछ करना चाहो करो, लेकिन हमारी रुह को क़ैद करना तुम्हारे बस की बात नहीं) तुम मौत की धमकी देते हो और हम उसी मौत को अपनी कामयाबी तुम्हारी शिकस्त समझते हैं।

 

काटी ज़बां तो ज़ख़्मे गुलू बोलने लगा

चुप हो गया क़लम तो लहू बोलने लगा

शहादते हुसैन के बाद भी खानदाने नबी को असीर कर के कूफ़े ले जाया गया तो यज़ीद ने इमामे सज्जाद और दीगर अफ़राद को ज़ंजीरों और हथकड़ियों में ज़रूर जकड़ा, उन पर मसाइब के पहाड़ तोड़े लेकिन यज़ीद और यज़ीदियत के सामने सरे तसलीम ख़म न कर सके, उन की रुह और ज़मीर को क़ैद न कर सके, यज़ीद असीरों से यह तवक़्क़ो रखता था कि अब इन में अहसासे निदामत होगा वह शहीदों की तरह बैअत ठुकरायेंगे नहीं बल्कि मअफ़ी तलब कर के बैअत पर आमादा होंगे लेकिन जूँ जूँ ज़ंजीरों में जकड़े हुए आज़ाद इन्सानों का यह क़ाफ़िला आगे बढ़ता गया यज़ीद की शिकस्त व हुसैन की कामयाबी के आसार रौशन होते गए हालात यज़ीद की मंशा के मुताबिक़ नहीं इमाम हुसैन की तरफ़ से तरतीब दिये गए प्रोग्राम के मुताबिक़ आगे बढ़ रहे थे, क़ाफ़ले की बाग़ डोर इब्ने ज़ियाद के हाथ में नहीं, इमामे सज्जाद के हाथों में थी, हुसैन की असीर बहन और बेटे का हालात पर पूरा क़ाबू था वह अपनी रूहानी ताक़त व शुजाअत की बुनियाद पर अपनी रूहानी आज़ादी व हुर्रियत की बुनियाद पर यज़ीदियत का दायर ए हयात तंग करते जा रहे थे।

 

फ़तहे यज़ीद कैसे शिकस्त में तबदील हुई !

यह कूफ़ा है, यज़ीद की मंन्फ़ी तबलीग़ात की वजह से लोग इस इन्तेज़ार में बैठे हैं कि मअज़ल्ला, दुश्मनाने इस्लाम के बचे खुचे अफ़राद को असीर कर के लाया जा रहा है, लोग यह समझ रहे थे कि दुश्मन को करबला में फ़ौजे यज़ीद ने क़त्ल कर दिया है, खुशी का समा है, इब्ने ज़ियाद ने अपनी ज़ाहिरी फ़तह की खुशी में दरबार को सजा रखा है, इब्ने ज़ियाद का ख़्याल यह था कि इन के सामने वह लोग हैं जिन के सामने सरे तसलीम ख़म करने के अलावा कुछ बाक़ी नहीं बचा है, लेकिन कूफ़े के बाज़ार में जब हुसैन की बहन और बेटे ने अपने तय शुदा प्रोग्राम के मुताबिक़ लोगों पर हक़ीक़त को रौशन किया तब जाके इब्ने ज़ियाद को अहसास हुआ कि रुहे हुसैन उन की बहन और बेटे के जिस्म में दौड़ रही है और अब भी फ़रियाद कर रही है अब भी हुसैन नारा दे रहे हैं मुझ जैसा यज़ीद जैसे की बैअत नहीं कर सकता है इन्क़िलाबे हुसैन का पहला मरहला यअनी ख़ून व शहादत को शोहदा ने अन्जाम दिया और इन्क़िलाबे हुसैन का दूसरा मर्हला यअनी शहीदों का पैग़ाम पहुचाना इमामे सज्जाद और ज़ैनब की ज़िम्मेदारी है, बाज़ारे कूफ़ा के इस मजमे पर यह वाज़ेह करना है कि जो क़त्ल किये गए हैं वह कोई और नहीं उसी पैग़म्बर की ज़ुर्रीयत है जिन का लोग कलमा पढ़ते हैं और जो लोग असीर किये गए हैं वह भी नबी की ज़ुर्रीयत हैं इमामे सज्जाद को इस मजमे के सामने वाज़ेह करना है कि हुसैन नवास ए रसूल शहीद किये गए हैं, इब्ने ज़ियाद और यज़ीद के मज़ालिम बयान करना और उन के चेहरे से नक़ाब उतारना इमामे सज्जाद की ज़िम्मेदारी है, इमाम ने कूफ़े के इस मजमे को यह अहसास भी दिलाना है कि तुम लोगों ने जिस इमाम को दावत दी थी करबला में उस को यको तन्हा क्यों छोड़ा, जब क़ाफ़िला इस बाज़ार में पहुंचा तो पहले अली की बेटी और फिर इमामे सज्जाद ने ख़ूने हुसैन का पैग़ाम पहुंचाया आप ने मजमे से मुख़ातिब हो कर एक क़ुदरत मन्द और आज़ाद इन्सान की तरह खामोश रहने को कहा और फ़रमाया लोगों! खामोश रहो इस क़ैदी की आवाज़ सुन कर सब लोग ख़ामोश और फिर आप फ़रमाते हैं।

 

लोगों ! जो कोई मुझे पहचानता है, पहचानता है। और जो नहीं पहचानता है वोह जान ले कि मैं अली फ़रज़न्दे हुसैन इब्ने अली इब्ने अबी तालिब हूं मैं उस का बेटा हूं जिस की हुरमत को पायमाल कराया और जिस का माल व सरमाया लूटा गया और जिस की औलाद को असीर किया गया है मैं उस का बेटा हूं जिस का नहरे फ़ुरात के किनारे सर तन से जुदा किया गया है जब कि न उस ने किसी पर ज़ुल्म किया था और न ही किसी को धोका दिया था। ऐ लोगों क्या तुमने उन की बैअत नहीं की ? क्या तुम वही नहीं हो जिन्होंने उन के साथ ख़यानत की ? तुम कितने बद ख़स्लत और बद किरदार हो ?

 

ऐ लोगो! अगर रसूले खुदा तुम से कहें : तुमने मेरे बच्चों को क़त्ल किया, मेरी हुरमत को पायमाल किया, तुम लोग मेरी उम्मत नहीं हो ! तुम किस मुह से उन का सामना करोगे ? (1)

 

इमाम के इस मुख़्तसर मगर दर्द मन्द और दिल सोज़ कलाम ने मजमे में कोहराम बरपा किया हर तरफ़ से नाला व शेवन की सदा बुलन्द होने लगी, लोग एक दूसरे से कहने लगे लोगों हम सब हलाक हुए और यूँ वह मजमा जो तमाशा देखने आया था यज़ीद और इब्ने ज़ियाद का बुग़्ज़ व कीना और उन के साथ नफ़रत लेकर वहाँ से वापस गया और तबलीग़ाते सू की वजह से फ़ैलने वाली अन्धेरा छटने लगा।

 

यज़ीद का आख़री मोर्चा भी फ़तह हुआ।

अहले शाम मुआविया और उमवी लाबी की ग़लत तबलीग़ात की वजह से अहले बैत के बारे में बिल्कुल बेख़बर थे बल्कि अहले बैत की एक उलटी तस्वीर उन के ज़ेहनो में नक़्श थी अहले शाम, अली और आले अली को दुश्मने दीन समझते थे और उमवियों को ही पैग़म्बर का हक़ीक़ी वारिस समझते थे, जब हुसैनी इन्क़ेलाब का पैग़ाम पहुचाने वाला यह क़ाफ़िला शाम पहुंचा तो ज़ंजीरों में जकड़े इमामे सज्जाद के लिये एक सुनहरी मौक़ा हाथ आया कि वह अहले बैत का सही तआरुफ़ अहले शाम को करवायें और उमवी तबलीग़ात का जवाब दें चुनांचे इमामे सज्जाद ने मौक़े को ग़नीमत जानते हुए ऐसा ही क्यों किया, चुनाँचे तारीख़ बताती है कि जब यज़ीद के हुक्म से एक दिन एक ख़तीब मिम्बर पर बैठा और इमामे हुसैन और अली इब्ने अबी तालिब की शान में गुस्ताख़ी की और मुआविया और यज़ीद की मदह सराई की तो इमामे सज्जाद एक आज़ाद और ग़य्यूर मुजाहिद की तरह बुलन्द हुए और ख़तीब से मुख़ातिब हो कर कहा लानत हो तुम पर ऐ ख़तीब ! तुम ने मख़लूक़ को खुश करने के अवज़ खालिक़ के ग़ैज़ व ग़ज़ब को मोल लिया और अपनी जगह जहन्नुम में क़रार दी।

 

और फिर यज़ीद से कहा ! क्या तुम मुझे इन लकड़ी के टुकड़ों (मिम्बर) पर बैठने की इजाज़त देते हो ताकि मैं वोह बातें कहूं जिस में खुदा की मर्ज़ी हो और हाज़रीन के लिये भी सवाब हो ?

 

यज़ीद ने पहले इजाज़त देने से इन्कार किया लेकिन लोगों के इसरार की वजह से वह मजबूर हुआ, इमाम जब मिम्बर पर बैठे तो खुदा की हम्द व सना के बाद एक ऐसा ख़ुत्बा दिया कि हर आँख तर और हर दिल ग़म ज़दा हुआ फ़िर अहले बैत की छ : फ़ज़ीलतों को शुमार किया और फिर लोगों से मुख़ातिब हो कर कहा !

 

लोगों ! जो मुझे पहचानता है वह पहचानता है और जो नहीं पहचानता है मैं खुद को पहचनवाता हूँ मैं मक्का व मिना का बेटा हूँ, मैं ज़म ज़म व सफ़ा का फ़रज़न्द हूँ, मैं उस बुज़ुर्गवार का बेटा हूं जिस ने हज्रे अस्वद को अपनी अबा में उठाया, मैं बेहतरीन इन्सान का बैटा हूँ, मैं उस का बैटा हूँ, जिस को आसमान की सैर में सिद्रातुल मुन्तहा तक ले जाया गया मैं मोहम्मदे मुस्तफ़ा का बैटा हूँ, मैं अली का फ़रज़न्द हूँ, इमाम ने दर्द व जोश के साथ जब इस ख़ुत्बे को जारी रखा तो यज़ीद लरज़ने लगा और फ़ौरन हीले के तौर पर मोअज़्ज़िन से आज़ान देने को कहा मोअज़्ज़िन ने अज़ान शुरु की जब मोअज़्ज़िन ने अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलल्लाह कहा तो इमाम ने यज़ीद की तरफ़ रुख कर के कहा यज़ीद क्या मोहम्मद मेरे जद हैं क्या तेरे ? अगर कहते हो तेरे जद हैं तो झूट बोलते हो और उस के हक़ का इन्कार करते हो और अगर कहते हो कि मेरे जद हैं तो बताओ क्यों उस के बेटों को क़त्ल किया ? क्यों उस के अहले बैत को असीर किया और उस के बच्चों को क्यों आवारा किया ? इस मौक़े पर इमामे सज्जाद ने अपना जामा पारा किया और बुलन्द गिरया करने लगे और लोग भी बुलन्द आवाज़ में फ़रियाद करने लगे ऐसे आलम में मस्जिद में इन्क़ेलाब बरपा हुआ और कुछ लोगों ने नमाज़ पढ़ी और कुछ बग़ैर नमाज़ के बाहर निकले और पूरे शहर में ख़बर गश्त करने लगी इमामे सज्जाद ने अपने जकड़े हुए हाथों से उमवियों की बुनियादों को हिला दिया और अपने दर्द मन्द और दिल सोज़ ख़ुत्बों के ज़रीए इन के चालिस साल के प्रोपगंडे को नाकारा बना दिया और अहले बैत और शोहदा ए करबला की सही तस्वीर लोगों के सामने रख दी, अगर इमामे सज्जाद और ज़ैनब का यह क़ाफ़िला न होता तो यज़ीद शहादते हुसैन को करबला ही तक महदूद कर देता कितना बड़ा जिहाद किया हुसैन के बेटे और बहन जिन्होंने अपनी असीरी में भी यज़ीद व यज़ीदियत को तारीख़ के सामने रुसवा किया और अब उस के नाम के साथ ज़ुल्म, बरबरियत, ख़ूँ ख़्वारी अलावा कुछ नहीं लिखा जाता है। और यहीं पर इमामे सज्जाद की मज़लूमियत का भी पता चलता है कि यह अज़ीम मुजाहिद जिस ने इस इन्क़ेलाबे हुसैन को पाय ए तकमील तक पहुंचाया और पैग़ामे करबला को आम किया जकड़े और रसन बस्ता हाथों के ज़रिये यज़ीदियत की दीवार मुन्हदिम की वह इमाम आज अपने मानने वालों के दरमियान एक बीमार के तौर पर मअरुफ़ है। और उन के कारनामों में सिर्फ़ रोना और गिरया से वाक़िफ़ है और इस तारीख़ी कारनामे से बिल्कुल ग़ाफ़िल हैं जो कि इमाम ने इन्क़ेलाबे हुसैन की हिफ़ाज़त, तरवीज व तबलीग़ के लिये अन्जाम दिया।

 

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के कथन

१. तन्दरूस्ती के वक़्त (समय) बीमारी के लिए और ज़िन्दगी में आख़ेरत (परलोक) के लिए तूशा (सामाग्री) फ़राहम करो।

२. मुस्कर (नशे वाली चीज़ें) चीज़ों से परहेज़ करो क्योंकि यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।

३. जो कम रोज़ी पर ख़ुदा से राज़ी होगा ख़ुदावन्दे आलम भी उसके अमले क़लील (कम अमल) पर राज़ी रहेगा।

४. झूठी क़सम माल की नाबूदी (बर्बाद) और तेजारत में अदमे बरकत (बरकत का ख़त्म होना) का बायस (कारण) है।

५. सबसे बेहतर वह शख़्स है जिसकी बातें तुम्हारे इल्म (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करें और तुमको ख़ैर की दावत दें।

६. अपनी औलाद का एहतेराम (इज़्ज़त) करो और उनकी अच्छी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो।

७. किसी को उस वक़्त तक परहेज़गार न समझा जायेगा जब तक वह शक व शुबाह (संदिग्ध) वाले कामों से इज्तेनाब (बचना) और हराम से बचेगा नहीं।

८. ज़्यादा माल व दौलत से बहुत ख़ुश न हो और किसी हाल में ख़ुदा को न भूलो।

९. हक़ीक़ी मोमिन वह है जो अपने माल में हाजतमन्दो को शरीक करे और लोगों से इन्साफ़ करे।

१०. जिसने तुम पर एहसान किया उसका हक़ तुम पर यह है कि उसका शुक्रिया अदा करो उसके एहसान को भूलो नहीं और उसके नाम को नेक चीज़ों से शोहरत दो।

११. दुनिया की लालच में मुबतला की मिसाल रेशम के उस कीड़े की सी है के जो जितना घूमता है उतना ही अपने को जाल में उलझा लेता है।

१२. अगर तुमसे कोई गुनाह (पाप) सरज़द हो जाये तो फ़ौरन ख़ुदा से तौबा (प्रायश्चित) करो।

१३. जब तुमसे फ़ैसले की तवक़्क़ो (आशा) की जाए तो बहुत होशियार होकर अदालत (न्याय) का ख़्याल रखो।

१४. जो शख़्स अपने और अपने ख़ुदा के दरमियान मामला साफ़ रखता है ख़ुदावन्दे आलम उसके और दूसरें लोगों के दरमियान मामला साफ़ रखता है।

१५. हर शख़्स की क़द्र उसकी ख़ूबियों के बराबर है।

१६. अपने ख़ुदा के अलावा किसी और से उम्मीदवार मत रहो।

१७. ख़ुदावन्दे आलम बेकार आदमी को पसन्द नहीं करता।

१८. जो शख़्स तुमको बुलाये उसकी दावत क़ुबूल (स्वीकार) करो और मरीज़ो की अयादत (बीमार की हालत पूछना) करो।

१९. क़र्ज़ लेने से इज्तेनाब (बचो) करो (क्योंकि) वह रात में अफ़सोस का बायस (कारण) और दिन में ज़िल्लत का बायस है।

२०. जिससे मिलों उसे सलाम करो ताकि ख़ुदावन्दे आलम तुम्हारे अज्र (इनाम) में इज़ाफ़ा करे।

२१. बदबख़्त वह शख़्स है जो तजुर्बा और अक़्ल के फ़वाएद (फ़ायदा का बहु वचन) से महरूम रहे।

२२. तुम चाहे जितना ताक़त व क़ुव्वत ,माल व दौलत में ज़्यादा रहो फिर भी अपने ख़ानदान व क़ौम के मोहताज रहोगे।

२३. दोस्तों का छूट जाना बेकसी है।

२४. छुप कर सदक़ा (गुप्त दान से) देने से ख़ुदावन्दे आलम का ग़ज़ब (ईशवरीय प्रकोप) ज़ाएल (टल जाता है) हो जाता है।

२५. सब्र व रज़ा तमाम ताक़तों से बलन्द है।

२६. बच्चों की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो जो कल मुआशरे (समाज) में उसकी ख़ुबसूरती का बायस (कारण) है।

२७. अल्लाह से नाउम्मीदी (निराशा) का गुनाह बे गुनाहों का ख़ून बहाने से ज़्यादा है।

२८. अपनी औलाद की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो के ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ शोबों में आबरूमन्द और बाइज़्ज़त ज़िन्दगी गुज़ार सकें और तुम्हारे फ़ख़्र (गर्व) का बायस हों।

२९. जो शख़्स अपने घर वालों पर ज़्यादा फ़ेराख़ दिली दिखाता है ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी उनके शामिल हाल रहती है।

३०. यतिमों पर माँ बाप की तरह रहम करो और यह ख़्याल रहे कि आज जो अमल करोगे कल उसी की जज़ा मिलेगी।

३१. जो शख़्स लोगों पर बहुत मिन्नत (ख़ुशामद) रखता है वह लईम व पस्त है।

३२. ख़ुदावन्दे आलम उस जवान को पसन्द करता है जो अपने नापसन्दीदा आमाल पर नादिम (शर्मिन्दा) हो और तौबा (प्रायश्चित) कर ले।

३३. मोमिन की रातों की इबादत उसका शरफ़ है लोगों में बेनियाज़ी (बेपरवाही) उसकी इज़्ज़त।

३४. क्या कहना उस शख़्स का जो हाज़िर लज़्ज़तों को ग़ाएब नेमतों के हुसूल के लिए छोड़ दे।

३५. ग़रीब वह शख़्स है जिसे मुआशरे (समाज) में अपने साथी न मिल सकें।

३६. आख़री ज़माने में जो चीज़ सबसे कम मिलेगी वह मोरिदे इत्मिनान (विश्वसनीय) दोस्त और हलाल आमदनी है।

३७. ख़ुदावन्दे आलम इस्लाम की उन लोगों से ताईद कराता है जो उसके दाएरे में न भी हों।

३८. उन चीज़ों में मश्ग़ूल रहना जो इन्सान के काम न आने वाली हों सख़्त तरीन ग़लती है।

३९. हासिद (ईर्ष्यालु) कभी बा-इज़्ज़त नहीं हो पाता और कीना परवर (मन में बुराई रखने वाला) अपने ग़ुस्से से मरा करता है।

४०. अज़मत (बढ़ाई) उसी को हासिल है जो लोगों को मेज़ाह (मज़ाक़) का ज़रिया न बनाये उनको धोका न दे और उनकी इज़्ज़त में कमी न करे।

 

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 95 हिजरी मे मुहर्रम मास की पच्चीसवी (25) तिथि को हुई। शहादत का कारण हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक द्वारा रचा गया षड़यन्त्र था। जिसके अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया।

 

समाधि

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की समाधि अरब के प्रसिद्ध व पवित्र नगर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रति वर्ष लाखो श्राद्धालु वहाँ जाकर आपकी समाधि के दर्शन करते हैं।

 

।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद।।

موافقین ۰ مخالفین ۰ 16/02/23
Mesam Naqvi

نظرات  (۰)

هیچ نظری هنوز ثبت نشده است

ارسال نظر

ارسال نظر آزاد است، اما اگر قبلا در بیان ثبت نام کرده اید می توانید ابتدا وارد شوید.
شما میتوانید از این تگهای html استفاده کنید:
<b> یا <strong>، <em> یا <i>، <u>، <strike> یا <s>، <sup>، <sub>، <blockquote>، <code>، <pre>، <hr>، <br>، <p>، <a href="" title="">، <span style="">، <div align="">
تجدید کد امنیتی