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Mesam Naqvi

امام على علیه السلام

    مَا أَضْمَرَ أَحَدٌ شَیْئاً إِلَّا ظَهَرَ فِی فَلَتَاتِ لِسَانِهِ وَ صَفَحَاتِ وَجْهِه‏

1. इमाम अली (अ.स.)
जो शख्स भी कोई चीज़ अपने दिल मे छुपाने की कोशिश करता है तो उसके दिल की बात उसकी जबानी ग़लतीयो और चेहरे से मालूम हो जाती है।
(नहजुल बलाग़ा, हदीस न. 25)
 

   رسول اکرم صلى الله علیه و آله
    مَنْ کانَ یُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَ الْیَوْمِ الْآخِرِ فَلْیَقُلْ خَیْراً أَوْ لِیَسْکُتْ.
 

2. रसूले अकरम (स.अ)
जो कोई भी खुदा और आखेरत पर ईमान रखता हो उसे चाहिये कि सिर्फ अच्छी बात बोले या खामोश रहे।
(उसूले काफी, जिल्द 2 पेज न. 667)
 

 امام باقر علیه السلام
    إِنَّ هذَا اللِّسانَ مِفتاحُ کُلِّ خَیرٍ و شَرٍّ فَیَنبَغى لِلمُؤمِنِ أَن یَختِمَ عَلى لِسانِهِ کَما یَختِمُ عَلى ذَهَبِهِ وَ فِضَّتِهِ

3.  इमाम बाक़िर (अ.स)
बेशक जबान हर अच्छाई और बुराई की चाबी है पस मोमीन के लिऐ ज़रूरी है कि अपनी जबान की निगरानी करे जैसे अपने सोने और चांदी की निगरानी करता है।
(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 298)


    امام سجاد علیه السلام
    حَقُّ اللِّسَانِ إِکْرَامُهُ عَنِ الْخَنَى وَ تَعْوِیدُهُ الْخَیْرَ وَ تَرْکُ الْفُضُولِ الَّتِی لَا فَائِدَةَ

 

4. इमाम सज्जाद (अ.स)
जबान का हक ये है कि इसे बुरी बातो के कहने से दूर रखो और इसे अच्छी बातो की आदत डालो और उन बातो क छोड़ दो कि जिन का कोई फायदा नही है।
(मकारिमुल अखलाक़, पेज न. 419)
 


 امام على علیه السلام
    اَللِّسانُ سَبُعٌ إِن خُلِّىَ عَنهُ عَقَرَ.

5. इमाम अली (अ.स)
ज़बान एक दरिन्दा है, ज़रा आजाद कर दिया जाए को काट खाएगा।
(नहजुल बलाग़ा, हदीस न. 59)
    

امام على علیه السلام
    اِحبِس لِسانَکَ قَبلَ أَن یُطیلَ حَبسَکَ وَ یُردىَ نَفسَکَ فَلا شَىءَ أَولى بِطولِ سَجنٍ مِن لِسانٍ یَعدِلُ عَنِ الصَّوابِ و یَتَسَرَّعُ إِلَى الجَوابِ.

6. इमाम अली (अ.स)
अपनी जबान को कैद कर दो इस से पहले की ये तुम्हे एक लम्बी क़ैद मे डाल दे क्योकि कोई चीज़ भी उस जबान से ज़्यादा कैद होने की हकदार नही है कि जो सही रास्ते को छोड़ दे और हमेशा जवाब देने को बेताब रहती है।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 214, हदीस न. 4180)


رسول اکرم صلى الله علیه و آله
    یُعَذِّبُ اللَّهُ اللِّسَانَ بِعَذَابٍ لَا یُعَذِّبُ بِهِ شَیْئاً مِنَ الْجَوَارِحِ فَیَقُولُ أَیْ رَبِّ عَذَّبْتَنِی بِعَذَابٍ لَمْ تُعَذِّبْ بِهِ شَیْئاً فَیُقَالُ لَهُ خَرَجَتْ مِنْکَ کَلِمَةٌ فَبَلَغَتْ مَشَارِقَ الْأَرْضِ وَ مَغَارِبَهَا فَسُفِکَ بِهَا الدَّمُ الْحَرَامُ وَ انْتُهِبَ بِهَا الْمَالُ الْحَرَامُ وَ انْتُهِکَ بِهَا الْفَرْجُ الْحَرَامُ

7. रसूले अकरम (स.अ)
खुदा वंदे आलम जबान पर ऐसा अज़ाब नाज़िल करेगा कि जो बदन के किसी दूसरे हिस्से पर नाज़िल नही किया होगा तो जबान परवरदिगार से शिकवा करेगी कि बारे इलाहा। तूने (क्यो) मुझ पर ऐसा अज़ाब नाज़िल किया जो जो बदन के किसी दूसरे हिस्से पर नाज़िल नही किया तो अल्लाह उसे जवाब देगा कि तुझसे ऐसी बाते निकली है कि जो पूरब से पश्चिम तक फैल गई और उनकी वजह से (बहुत से) खूने नाहक़ बहे और बहुत से माल नाहक़ गारत हुऐ।
(उसूले काफी,  जिल्द 2, पेज न.115, हदीस न. 16)


  پیامبر صلى ‏الله ‏علیه ‏و ‏آله
     إِنَّ لِسَانَ الْمُؤْمِنِ وَرَاءَ قَلْبِهِ فَإِذَا أَرَادَ أَنْ یَتَکَلَّمَ بِشَیْ‏ءٍ یُدَبِّرُهُ بِقَلْبِهِ ثُمَّ أَمْضَاهُ بِلِسَانِهِ وَ إِنَّ لِسَانَ الْمُنَافِقِ أَمَامَ قَلْبِهِ فَإِذَا هَمَّ بِالشَّیْ‏ءِ أَمْضَاهُ بِلِسَانِهِ وَ لَمْ یَتَدَبَّرْهُ بِقَلْبِه‏

8. रसूले अकरम (स.अ)
मोमीन की जबान उसके दिल के पीछे है वो पहले सोचता है फिर बोलता है लेकिन मुनाफिक की जबान उसके दिल के आगे है जब भी बोलना चाहता है बोल देता है उसके बारे मे सोचता नही है।
(तंबीहुल खवातिर, जिल्द न. 1, पेज न. 106)


امام على علیه السلام
    وَرَعُ الْمُنَافِقِ لَا یَظْهَرُ إِلَّا عَلَى لِسَانِه‏

 9. इमाम अली (अ.स)
मुनाफिक़ की परहेज़गारी सिर्फ उसकी ज़बान से जाहिर होती है।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 459, हदीस न. 10509)


   امام على علیه السلام
    عِلمُ المُنافِقِ فی لِسانِهِ وَ عِلمُ المُؤمِنِ فی عَمَلِهِ

10.  इमाम अली (अ.स)
मुनाफिक़ का इल्म उसकी ज़बान पर और मोमीन का इल्म उसके किरदार मे दिखाई देता है।


امام على علیه‏ السلام
     عَوِّدْ لِسَانَکَ لِینَ الْکَلَامِ وَ بَذْلَ السَّلَامِ یَکْثُرْ مُحِبُّوکَ وَ یَقِلَّ مُبْغِضُوک

11. इमाम अली (अ.स)
अपनी ज़बान को मीठी बातो और सलाम करने की आदत डालो ताकि तुम्हारे दोस्त ज़्यादा और दुश्मन कम हो।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 435, हदीस न. 9946)


 پیامبر صلی الله علیه و آله
 مَن دَفَعَ غَضَبَهُ دَفَعَ اللّه‏ُ عَنهُ عَذابَهُ وَ مَن حَفِظَ لِسانَهُ سَتَرَ اللّه‏ُ عَورَتَهُ

12. रसूले अकरम (स.अ)
जो अपने गुस्से को कंट्रोल कर लेता है खुदा उससे अजाब को हटा लेता है और जो अपनी ज़बान को कंट्रोल कर लेता है खुदा उसके ऐबो को छुपा लेता है।
(नहजुल फसाहा, पेज न. 767, हदीस न. 3004)


  امام باقر علیه‏ السلام
    لا یَسلَمُ أحَدٌ مِنَ الذُّنوبِ حَتَّی یَخزُنَ لِسانَهُ

13.  इमाम बाक़िर (अ.स)
जब तक इंसान अपनी ज़बान पर कंट्रोल नही कर लेता, गुनाहो से नही बच सकता।
(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 298)
  


 امام صادق علیه‏ السلام
     إِنَّ أَبْغَضَ خَلْقِ اللَّهِ عَبْدٌ اتَّقَى النَّاسُ لِسَانَه‏

14.  इमाम सादिक़ (अ.स)
बेशक खुदा वंदे आलम उस बंदे से सबसे ज़्यादा नफरत करता है जिसके ज़बान के शर से लोग उससे बचते हो।
(उसूले काफी,  जिल्द 2, पेज न. 323)


   امام علی علیه‏ السلام
     لا تَقُل ما لا تُحِبُّ أن یُقالَ لَکَ

15. इमाम अली (अ.स)
किसी को ऐसी बात मत कहो कि जो तुम अपने बारे मे सुनना नही चाहते।
(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 74)

 

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Mesam Naqvi

رسول اکرم صلى الله علیه و آله
لا تَزالُ اُمَّتى بِخَیرٍ ما تَحابّوا وَ اَقامُوا الصَّلاةَ و َآتَوُا الزَکاةَ و َقَروا الضَّیفَ... ؛

1.    रसूले अकरम (स.अ.व.व)
हमेशा मेरे उम्मती खैरो बरकत को देखेंगे जब तक की एक दूसरे से मौहब्बत करते रहे, नमाज पढ़ते रहे, जकात देते रहे और मेहमान की इज़्ज़त करते रहे।
(अमाली शेख तूसी पेज न. 647 हदीस न. 1340)

 

رسول اکرم صلى الله علیه و آله 

الدّعاء مفتاح الرّحمة و الوضوء مفتاح الصّلاة و الصّلاة مفتاح الجنّة

2.    रसूले अकरम (स.अ.व.व)
दुआ रहमत की चाबी है। और वुज़ु नमाज़ की चाबी और नमाज़ जन्नत की चाबी है।
(नहजुल फसाहा पेज न. 485 हदीस न. 1588)

 

رسول اکرم صلى الله علیه و آله
 أَوَّلُ الْوَقْتِ رِضْوَانُ اللَّهِ وَ آخِرُهُ عَفْوُ اللَّه

3.    रसूले अकरम (स.अ.व.व)
अव्वले वक्त मे नमाज़ पढ़ना खुशनूदीऐ खुदा और आखिरे वक्त मे नमाज़ पढ़ना बखशिशे खुदा है।
(मनला यहज़रोहुल फक़ीह जिल्द 1 पेज न. 217 हदीस न. 651)

 

امام على علیه السلام
لَو یَعلَمُ المُصَلّى ما یَغشاهُ مِنَ الرَّحمَةِ لَما رَفَعَ رَأسَهُ مِنَ السُّجودِ

4.    इमाम अली (अ.स)
अगर नमाज़ पढ़ने वाला जान ले कि नमाज़ पढ़ते वक्त उस पर कितनी रहमते खुदा बरस रही है तो हरगिज़ सजदे से सर नही उठाऐगा।
(गुरारूल हिकम पेज न. 175 हदीस न.  3347)

 

امام على علیه السلام
اُنظُر فیما تُصَلّى و َعَلى ما تُصَلّى اِن لَم یَکُن مِن وَجهِهِ و َحِلِّهِ فَلا قَبولَ


5.    इमाम अली (अ.स)
देखो कि तुम किस लिबास मे और किस चीज़ पर नमाज़ पढ़ रहे हो अगर हलाल माल से खरीदे हुऐ नही है तो नमाज़ कुबुल नही होगी।
(तोहफुल उक़ूल पेज न.  174)

 

امام صادق علیه السلام
مَن قَبِلَ اللّه مِنهُ صَلاةً واحِدَةً لَم یُعَذِّبهُ و َمَن قَبِلَ مِنهُ حَسَنَهً لَم یُعَذِّبهُ

6.    इमाम सादिक़ (अ.स)
परवरदिगारे आलम जिस की एक नमाज़ को कुबुल कर लेगा या उसकी एक नेकी को कुबुल कर लेगा तो उसको कभी अज़ाब नही करेगा।
(उसूले काफी जिल्द न. 3 पेज न. 266 हदीस न.  11)

 

 امام صادق علیه السلام
یُعرَفُ مَن یَصِفُ الحَقَّ بِثَلاثِ خِصالٍ: یُنظَرُ اِلى اَصحابِهِ مَن هُم؟ و َاِلى صَلاتِهِ کَیفَ هىَ؟ و َفى اَىِّ وَقتٍ یُصَلّیها

7.    इमाम सादिक़ (अ.स)
जो शख्स भी अपनी हक्कानियत का दम भरता हो तो उसकी पहचान के तीन तरीक़े हैः
1.    देखो कि उसके दोस्त कैसे लोग है।
2.    उसकी नमाज़ कैसी है।
3.    और वो किस वक्त नमाज़ पढ़ता है।
(महासिन पेज न. 254 हदीस न. 281)

 

امام صادق علیه السلام
أَقرَبُ ما یَکُونُ العَبدُ إلَی اللهِ وَ هُوَ ساجِدٌ

8.    इमाम सादिक़ (अ.स)
बंदे को परवरदिगार के सबसे ज्यादा नजदीक कर देने वाली हालत, हालते सजदा है।
(उसूले काफी जिल्द 3 पेज न. 324 हदीस 11)

 

 امام صادق علیه السلام
أَثَافِیُّ الْإِسْلَامِ ثَلَاثَةٌ الصَّلَاةُ وَ الزَّکَاةُ وَ الْوَلَایَةُ لَا تَصِحُّ وَاحِدَةٌ مِنْهُنَّ إِلَّا بِصَاحِبَتَیْهَا
.

9.    इमाम सादिक़ (अ.स)
इस्लाम की बुनयाद तीन चीज़ो पर हैः
1)    नमाज़
2)    ज़कात
3)    और विलायत
और उनमे से कोई एक भी दूसरे के बग़ैर सही नही है।
(काफी जिल्द न. 2 पेज न. 18 हदीस न. 4)

 

 امام صادق علیه السلام
اِنَّ مِن تَمامِ الصَّومِ اِعطاءُ الزَّکاةِ یَعنى الفِطرَة کَما اَنَّ الصَّلَاةَ عَلَى النَّبِى (صلی الله علیه و آله و سلم) مِن تَمامِ الصَّلَاةِ

10.    इमाम सादिक़ (अ.स)
रोज़े की तकमील फितरा अदा करना है इसी तरह नमाज़ की तकमील नबी पर सलवात भेजना है।
(मनला यहज़रोहुल फक़ीह जिल्द 2 पेज न. 183 हदीस न. 2085)

 

امام کاظم علیه السلام
اَفضَلُ ما یَتَقَرَّبُ به العَبدُ اِلی اللهِ بَعدِ المَعرِفَةِ به، الصَلاةُ

11.    इमाम काज़िम (अ.स)
मारेफते खुदा के बाद अफज़लतरीन चीज़ के जो बंदे को खुदा के क़रीब करती है, नमाज़ है।
(तोहफुल उक़ूल पेज न. 391)

 

 امام علی علیه السلام
لِکُلِّ شَیءٍ وَجهٌ وَ وَجهُ دینِکم الصَّلاةُ؛

12.     इमाम अली (अ.स)
हर चीज का एक चेहरा है और तुम्हारे दीन का चेहरा नमाज़ है।
(उसूले काफी जिल्द न. 3 पेज न. 270 हदीस न. 16)

 

رسول اکرم صلى الله علیه و آله
لا یَنالُ شَفاعَتی مَن اَخَّرَ الصَّلاةَ بَعدَ وَقتِها

13.     रसूले अकरम (स.अ.व.व)
जो शख्स भी नमाज़ को उस वक्त के बाद पढ़ेगा उसे हमारी शफाअत नसीब नही होगी।
(बिहारूल अनवार जिल्द न. 80 पेज न. 20, हदीस न. 35)

 

امام علی علیه السلام
مَن صَلّی رَکعَتَینِ یَعلَمُ مایَقولُ فِیهما اِنصَرَفَ وَ لَیسَ بَینَه وَ بَینَ اللهِ - عَزَّ وَ جَلَّ - ذَنبٌ

14.     इमाम अली (अ.स)
जो शख्स भी दो रकअत नमाज़ इस हाल मे पढ़े कि जानता हो (और समझता हो) कि क्या कह रहा है। और इसी हाल मे नमाज़ को खत्म करे तो उसके और खुदा के दरमियान कोई गुनाह बाकि नही है।
(यानी उसके तमाम गुनाह जो खुदा से ताल्लुक़ रखते थे माफ कर दिये गऐ।)
(मकारिमुल अखलाक़ पेज न. 300)

 

امام صادق علیه السلام
لا یَنالُ شَفاعَتَنا مَن استَخَفَّ بِالصَّلاة

15.    इमाम सादिक़ (अ.स)
जिसने नमाज़ को हल्का समझा उसे हमारी शिफाअत नसीब नही होगी।
(उसूले काफी जिल्द 3 पेज न. 270, हदीस न. 15)

 

امام علی علیه السلام
الصَّلاةُ حِصنٌ مِن سَطَواتِ الشَّیطانِ

16.     इमाम अली (अ.स)
नमाज़ एक मज़बूत किला है कि जो बंदे को शैतान के हमलो से बचाता है।
(गुरारूल हिकम पेज. न. 175 हदीस न. 3343)

 

 حضرت زهرا سلام الله علیها
فَجَعلَ اللهُ الایمانَ تَطهیراً لَکم مِنَ الشِّرکِ ، وَ الصَّلاةَ تَنزیهاً لَکم عَن الکِبرِ

17.    जनाबे फातेमा ज़हरा (सलामुल्लाहे अलैहा)
खुदा वंदे आलम ने ईमान को शिर्क से पाकीज़गी और नमाज़ को तकब्बुर से दूर रखने के लिऐ करार दिया है।
(अहतेजाजे तबरसी जिल्द न. 1 पेज न. 99)

 

پیامبراکرم صلی الله علیه و آله
اَحَبُّ الاعمالِ اِلَی اللهِ الصَّلاةُ لِوَقتِها ثُمَّ بِرُّ الوالِدَین ثُمَّ الجِهادُ فی سَبیلِ اللهِ

18.     रसूले अकरम (स.अ.व.व)
खुदा वंदे आलम के नज़दीक सबसे महबूब तरीन अमल नमाज़ को उसके वक्त पर पढ़ना है उसके बाद माँ-बाप से नेकी करना और खुदा की राह मे जंग करना है।
(नहजुल फसाहा, पेज न. 167, हदीस न. 70)

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